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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
किया गया है। पण्डित दौलतराम जी द्वारा 300 वर्ष पूर्व रचित छहढाला की निम्नांकित पंक्तियों में, जो हमारी माताएं बहिने सदैव पढ़ती हैं, ज्ञान को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया गया है:
ज्ञान समान न आन जगत में सख को कारन।
यह परमामृत जन्म जरा मृत्यु रोग निवारण।। 12. पुरा इतिहास काल में जैन धर्म के आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव ने अपनी दोनों
पुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी को स्वयं अध्ययन कराया है। उन्होंने स्वयं अपने उदाहरण के माध्यम से समाज की सभी स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा दी है। भगवान ऋषभदेव के स्त्री शिक्षा संबंधी महत्वपूर्ण उपदेश / आदेश को आचार्य जिनसेन द्वारा रचित आदिपुराण के निम्नांकित श्लोक 16/98 में लेखबद्ध किया गया है:
विद्यावान् पुरुषोलोके सम्मतिं याति कोविदैः।
नारी च तद्वती धत्ते स्त्रीसृष्टेरग्रिमं पदम्।। इस श्लोक का भावार्थ यह है कि इस लोक में विद्यावान पुरुष को पण्डितों के द्वारा सम्मानित किया जाता है। विद्यावती नारी सर्वश्रेष्ठ पद को प्राप्त करती है। अतः हे पुत्रियों! तुम विद्यार्जन हेतु सदा प्रयत्नशील रहो।। 13. तीर्थकर एवं आचार्यों की सतत प्रेरणा एवं उपदेश के कारण जैन श्रावकाचार में
शिक्षा प्राप्ति का सर्वाधिक महत्व रहा है। शिक्षित और ज्ञानी महिलाओं को समाज में सदा अग्रणी और सम्माननीय स्थान प्रदान किया गया है। लौकिक शिक्षा प्राप्त कर श्रमण संस्कृति का अध्ययन करने की हमारी महिलाओं में सदैव जागरूकता
एवं रुचि रही है। 14. नारी परिवार की आधारशिला है। वह सामाजिक रथ का सशक्त चक्र है। पवित्र
सामाजिक संस्कारों की जननी है। संस्कृति की संरक्षिणी है। दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत है। पारिवारिक, सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों की सफल प्रबंधक एवं संचालक है। नारी अपने नैसर्गिक गुणों से अपने घर को स्वर्ग बनाती है। पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधती है। वह करुणा की जीवंत मूर्ति है। वह ममता, समता, सहिष्णुता, शांति, श्रमशीलता, सहनशीलता, सेवा और विनम्रता जैसी शुचिधाराओं की संगम है। ममता, समता, वात्सल्य, प्रेम, समर्पण और त्याग के गुणों से विभूषित नारियों ने भारत को ही नहीं प्रत्युत सम्पूर्ण विश्व को अपनी कथनी और करनी के माध्यम से महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवदान दिया है। इन जैन नारियों ने अपने गौरव, गरिमा, तपस्या और त्याग की छवि सम्पूर्ण इतिहास में अंकित की है। जैन संस्कृति को
अमरता प्रदान करने में इस नारियों ने बहुमूल्य योगदान दिया है। 15. ज्ञान दान श्रेष्ठतम एवं सर्वोत्कृष्ट दान है। ज्ञान से हमारे अनेक कष्टों का निदान हो
जाता है। ज्ञान दान, भोजन दान और वस्त्र दान से श्रेष्ठ है। अतिथि को जल पिला कर हम उसे कुछ घण्टों के लिए संतुष्ट करते हैं। उसे भोजन देकर आधे दिन के लिए संतुष्ट करते हैं। वस्त्रदान से कुछ माह के लिए संतुष्ट करते हैं। घर दान कर
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