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जैन महिलाओं के व्यक्तित्व का चतुर्मुखी विकास
मातृत्व सुख से वंचित करती है तो यह निश्चित है कि वह अपनी कोख के खालीपन को आमंत्रित करती है। अपने भावी जीवन में अपनी खाली कोख पर वह निश्चित ही आंसू बहाती रहेगी। उसके आंचल का दूध सूख जायेगा। नारी की मातृत्व की संवेदनाऐं समाप्त हो जायेगी। वह प्राकृतिक जीवन चक्र को ध्वस्त कर देगी।
8. प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ वरदान मातृत्व सुख केवल नारी को ही प्राप्त है। भारतीय संस्कृति नारी को सदैव मातृत्व की गरिमा से अभिमण्डित करती रही है। भारतीय नारी ने असाधारण विपरीत परिस्थितियों में भी मातृत्व के गंभीर उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए शिशु को संरक्षित और संवर्द्धित किया है। राम द्वारा परित्यक्त गर्भवती सीता ने भीषण वन में असहय कष्ट उठाते हुए लव और कुश को जन्म दिया है। पहाड़ की गुफाओं में पड़ी असहाय अंजना ने हनुमान को जन्म दिया है। हमारे देश की जंगल में लकड़ी बीनती हुई आदिवासी महिलायें शिशु को जन्म दे देती हैं और सिर पर लकड़ी और हाथ में शिशु को लेकर अपने घर आ जाती हैं।
यह सही है कि वर्तमान समय में उच्च शिक्षित एवं प्रोफेशनल नव विवाहिताओं और माँ बनने वाली महिलाओं के लिए निजी क्षेत्र में नौकरी करना कठिन होता जा रहा है। अधिकांश कंपनियां नव विवाहित महिलाओं से उनकी योग्यता एवं कार्य अनुभव के साथ ही उनसे मातृत्व विवरण प्राप्त करती हैं। आवश्यक योग्यता एवं कार्य अनुभव होते हुए भी विवाहित, गर्भवती महिलाओं एवं छोटे शिशुओं की माताओं की तुलना में निजी क्षेत्र की अधिकांश कंपनियां अविवाहित महिलाओं को प्राथमिकता दे रही हैं।
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10. यह उपयुक्त प्रतीत होता है कि निजी क्षेत्र की कंपनियां गर्भवती महिलाओं एवं छोटे-छोटे शिशुओं की माताओं को घर बैठे काम दें। पार्ट टाइम जाब दें। उन्हें सीमित और निश्चित काल के लिए नियुक्त करें। टाइम बाउंड जॉब की अपेक्षा उन्हें अपनी सुविधानुसार पूर्व निर्धारित घण्टों के लिए प्रोजेक्ट आधारित कार्य दें। यह भी उपयुक्त प्रतीत होता है कि हमारे उच्च शिक्षित नवयुगल अपने प्रोफेशनल उत्तरदायित्व एवं अपने पारिवारिक / सामाजिक उत्तरदायित्वों के बीच आदर्श ढंग से समन्वय एवं संतुलन स्थापित करें। भारतीय संस्कारों का संरक्षण / संवर्द्धन करते हुए सांस्कृतिक विकास में अपना अनुपम योगदान प्रदान करें।
11. जैन समाज ज्ञान आधारित समाज है। जैन संस्कृति के रत्नत्रय में ज्ञान को महत्वपूर्ण रत्न और केन्द्रीय एवं आधारभूत कड़ी स्वीकार किया गया है। ईसा की द्वितीय शताब्दी में आचार्य उमास्वामी द्वारा विरचित तत्वार्थ सूत्र के प्रथम सूत्र सम्यक्दर्शन - ज्ञान - चारित्राणि मोक्षमार्गः में ज्ञान को केन्द्रीय भूमिका प्रदान की गई है। इसी तत्वार्थ सूत्र के मंगलाचरण में विश्व के समस्त तत्वों के जानकार सर्वज्ञ तीर्थंकर को प्रणाम करते हुए हमने यह अभिलाषा व्यक्त की है कि उनका ज्ञान हमें प्राप्त हो। जैन संस्कृति में अध्ययन, शिक्षा और स्वाध्याय को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया गया है और इसे प्रत्येक व्यक्ति के महत्वपूर्ण नियमित कर्त्तव्य के रूप में घोषित
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