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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
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1868 में अपनी पत्रिका कविवचन सुधा में "नारि नर सम होंहि" की प्रभावी उदघोषणा की है। महात्मा गाँधी ने मीराबाई के चरित्र से सत्याग्रह करने की प्रेरणा प्राप्त की। स्वर्णिम भारतीय इतिहास की इस पृष्ठभूमि को देखते हुए भी वर्तमान में युवकों और युवतियों के बीच इण्टरनेट पर विवाह और ईमेल पर मिलन समारोह हो रहे हैं। अलग-अलग नगरों में रहते हुए अपने लेपटॉप कम्प्यूटर के माध्यम से युवकों और युवतियों के बीच प्रेम संबंध स्थापित हो रहे हैं। प्रोफेशनल युवा पतियों एवं पत्नियों की कार्य संबंधी यात्राएँ बढती जा रही है। उनमें से कछ दम्पत्ति एक-दूसरे से यात्रा पर आते-जाते समय केवल एयर पोर्ट पर ही मिल पाते हैं। उन्हें एक नगर में एक-दूसरे के साथ कुछ समय के लिए भी रहना संभव नहीं हो पा रहा है। प्रोफेशनल और कैरियर नवयुगल के लिए पारिवारिक समय निरंतर घटता जा रहा है। वैवाहिक संबंधों में पारस्परिक मधुरता कम हो रही है। इन समस्याओं से महानगरों के नवयुगल सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। कार्यस्थल से माता-पिता के घर लौटने तक बच्चे सो जाते हैं। ऐसे माता-पिता अपने बच्चों से सप्ताह के अंत में अवकाश के दिन में ही भेंट कर पाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे अब साप्ताहिक माता-पिता बनते जा रहे हैं। कुछ नवयुगल अपनी व्यस्तताओं के कारण अपने शिशु को जन्म ही नहीं देना चाहते हैं। कुछ नवयुगलों ने शिशु को जन्म ही नहीं देने का निर्णय कर लिया है। वे दोहरी
आय किन्तु शिशु नहीं के सिद्धान्त का पालन कर रहे हैं। उन्होंने यह स्वीकार कर लिया है कि शिशु को जन्म देने से उनके पारस्परिक मिलने का समय और भी कम हो जायेगा। वे अपने प्रोफेशन के सर्वोच्च स्तर पर अपनी पारिवारिक व्यस्तता के कारण नहीं पहुंच सकेंगे। दुखद पक्ष यह है कि वे अपनी वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट प्रतीत होते हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा महानगरों से कराए गए सर्वे में यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि डबल इनकम नो किड्स का फंडा भारत में लोकप्रिय होता जा रहा है। ऐसे नवयुगल बढ़ते जा रहे हैं जिनके पास दोहरी आय के साधन तो हैं, पर कोई संतान नहीं है। वे ऐशो आराम का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। ऐसे नवयुगल, होटल, मनोरंजन, शॉपिंग, फिटनेस सेन्टर और ब्रांडेड कपड़ों पर व्यय कर रहे हैं। विदेशों और देश के पर्यटन स्थलों के भ्रमण पर व्यय कर रहे हैं। अनावश्यक वस्तुओं के क्रय पर व्यय कर रहे हैं किन्तु वे गर्भाधान और शिशु पर व्यय नहीं करना चाहते हैं। प्रत्येक नवयुगल का यह उत्तरदायित्व है कि वह अपने सम्मिलित प्रयास से शिशु को जन्म दे। अपनी कोख से शिशु को जन्म देना प्रत्येक महिला का परम कर्तव्य है। अपने शिशु का पालन-पोषण करना प्रत्येक माता का धर्म है। प्रत्येक महिला अपने विवाह के साथ प्राकृतिक रूप से ही भावी मातृत्व के सपनों में खो जाती है। गर्भ धारण करते ही अपने ममत्व और वात्सल्य से अपने गर्भस्थ शिशु को अभिसिंचित करती है। शिशु को जन्म देकर अत्यधिक प्रसन्न होती है। यदि नारी स्वयं को किसी भी कारण से ऐसे
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