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________________ 468 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ पड़ता है। अतः आप अपने आचरण से दुष्प्रवृत्तियों को बाहर निकालने का सतत और प्रभावी प्रयत्न करें। अपनी भूलों का निरीक्षण करें। अपने प्रमाद का गहनतापूर्वक परीक्षण करें। अपनी अल्पताओं और क्षुद्रताओं की समीक्षा करें। 26. भगवान ने आपको बड़ी क्षमता और शक्ति प्रदान की है। अतः आप अपनी क्षमता और शक्ति का सदुपयोग करें। सर्वप्रथम आप अपने ऊपर विजय प्राप्त कीजिए। अपने जीवन में आत्म-अनुशासन विकसित कीजिए। आप आज से ही आत्म अनुशासन के छोटे-छोटे बिन्दु विकसित करना प्रारंभ कर दें ताकि आप कल बड़ी सीमा तक अनुशासति हो सकें। पहली इच्छा को नियंत्रित करना सरल है। पहली इच्छा को संतुष्ट कर उसके पीछे-पीछे आने वाली अनेक इच्छाओं को संतुष्ट करना संभव नहीं हो पाता है। अतः हम अपनी इच्छओं को नियंत्रित करें और अपनी मांगों को सीमित करें। अपने अच्छे उद्देश्यों और अच्छे विचारों को कार्य में बदलिए। सफलता की इच्छा, तैयारी करने की इच्छा, प्रशिक्षण लेने की इच्छा, अपने कौशल को निखारने की इच्छा से ही आप आगे बढ़ सकते हैं। सफलता प्राप्त करने के लिए अपने जीवन में सतत रूप से निवेश करें। अपनी क्षमता को पहचानें। उसका समुचित सदुपयोग करें। निष्काम भाव से परिश्रम करें। प्रतिभा हमें स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाती है। अच्छा चरित्र हमें धीरे-धीरे बनाना पड़ता है। हम अपनी भावनाओं से नहीं किन्तु अपने चरित्र से संचालित हो। अच्छे विचार, साहस और संकल्प से अच्छा चरित्र और अनुशासित जीवनशैली बनाएं। 27. आप समय बचाने का सदैव प्रयास करें। प्रतीक्षा के समय का सदुपयोग करें। सदैव रचनात्मक कार्य करें और समय का सार्थक उपयोग करें। बस और ट्रेन में बैठने केन समय का उपयोग हलके-फुलके काम करने और पढ़ने में करें। कभी भी बस और ट्रेन में बिना पुस्तक के नहीं बैठें। जब भी ट्रैफिक में फंस जायें, तो पुस्तक को बाहर निकालकर पढें। विचारों को लिखने के लिए नोट पैड भी रखें। इस प्रकार आप व्यक्तिगत विकास और काम के लिए आप कुछ अतिरिक्त घण्टे हासिल कर सकते हैं। ब्रश करते समय अच्छी बातें स्मरण करें। स्नान करते समय अच्छे गीत गुनगुनाएं। अपनी शरीरिक और मानसिक स्फूर्ति के क्षणों का निर्धारण करें। सर्वोच्च महत्व के कार्य इसी समय करें। स्वागत एवं सामाजिक संबंधों के लिए समय निर्धारित करें। नंत में प्रत्येक छोटी बहिन. बेटी एवं बह को मेरी यह विनम्र सलाह है कि इस आलेख को समय निकालकर पढ़ें, पुनः-पुनः पढ़ें एवं इस आलेख से प्रेरणा लेकर अपने एवं अपने परिवार के चतुर्मुखी विकास के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करें। अतिभोग और अतित्याग से बचें। अतिवादी जीवन से बचकर सम्यक जीवन प्राचीन और अर्वाचीन श्रेष्ठ जीवन मूल्यों का व्यावहारिक एवं वैज्ञानिक धरातल पर समन्वय करें और समकालीन परिस्थितियों में शाश्वत जीवन मूल्यों के संरक्षण का सार्थक प्रयास करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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