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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
रामावतार शर्मा ने एक ओर 'परमार्थ दर्शन' जैसे चिन्तन गूढ़ ग्रन्थ की रचना की है, तो दूसरी ओर हास्य-व्यंग्य कृति 'मुद्गरानन्द चरितावली' लिखकर अपने को प्रबल विनोदी भी साबित किया है। इसी प्रकार डॉ. हीरालाल जैन भी जितने महान् चिन्तक थे, उतने ही विनोदी स्वभाव के थे। उनमें विद्या, विनय और विनोद, इन तीनों की युगपद् स्थिति पाई जाती थी। डॉ. जैन प्राच्यविद्या के अध्ययन के क्षेत्र में सदा स्मरणीय रहेंगे और जैन साहित्य के इतिहास लेखकों को उनके लिए अनेक पृष्ठ सुरक्षित करने पड़ेंगे।
आचार्यकल्प डॉ. हीरालाल जैन ने अपने अप्रतिम वैदुष्य से जैन सिद्धान्त के अन्तर्गत संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा साहित्य को स्पृहणीय समृद्धि प्रदान की थी। विशेषतया प्राच्य भारतीय इतिहास संस्कृति, भाषाशास्त्र और शिलालेखीय साहित्य में उनकी .. सारस्वत उपलब्धि की द्वितीयता नहीं है। इसी प्रकार, जैन धर्म, दर्शन और साहित्य के सर्वतोभद्र विकास की दिशा में उनकी देन अद्वितीय है। वह जैन मनीषा के इतिहास-पुरुष के रूप में अभिनन्दनीय हैं और अभिवन्दनीय भी।
डॉ. जैन की कथनी और करनी में एकमेकता थी। वह 'कर्मण्येक', 'वचस्येक' तथा 'मनस्येक' सक्ति को सार्थक करने वाले महात्मा थे। वैशाली में तो वह सारस्वत सन्त के रूप में सुप्रतिष्ठित थे। उनके निदेशन-काल में वैशाली प्राकृत-शोध-संस्थान के कर्मचारियों में जैसी कौटुम्बिक भावना थी, वैसी, उनके परवर्ती काल में, पारिवारिकता प्रायोदुर्लभ हो गई है। वैशाली की भूमि के लिए यह महान् सौभाग्य घटित हुआ था कि डॉ. हीरालाल जैन जैसे सारस्वत सन्त के पावन पूत चरण वहाँ पड़े थे। उनके जैसे देवतात्मा के पदार्पण से वैशाली के प्राकृत-शोध-संस्थान की अपनी स्वतन्त्र पहचान कायम हुई। अनुशासन प्रिय डॉ. जैने ने प्राकृत-शोध-संस्थान को उसी प्रकार सरकारी आँच से बराबर बचाये रखा, जिस प्रकार आचार्य शिवपूजन सहाय ने बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् को सरकारी तन्त्र की जटिलता से सर्वथा अलग रखा था। खेद है कि आज वह स्थिति आकाशकुसुम हो गई है।
'संस्थान' के वर्तमान निदेशक डॉ. ऋषभचन्द्र जैन पुण्यश्लोक डॉ. जैन की सारस्वत पुण्यस्मृति को अपनी रचनात्मक प्रशासनिक क्षमता से अक्षुण्ण रखने के निमित्त निरन्तर प्रयत्नशील हैं, परन्तु सरकारी तन्त्र की अपेक्षित अनुकूलता इन्हें सुलभ नहीं हो पा रही है। फलतः, डॉ. जैन के द्वारा जीवन की बाजी लगाकर रोपे गये इस 'संस्थान' रूप बिरवे के अपेक्षित रूप से पल्लवित-पुष्पित होने की सम्भावना बाधित हो रही है।
प्रथितनामा जैन मनीषी डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' के शब्दों में, "पुण्यचरित डॉ. जैन नई पीढ़ी के लिए वरदान-स्वरूप थे तथा विद्वानों और विद्यार्थियों के लिए अजस्र प्रेरणास्रोत थे। वह निश्चित रूप से सच्चे मानव और कर्मठ प्रतिभाशाली, कशल विद्वान एवं मार्गदर्शक शिक्षक थे।" (द्र. तत्रैव, पृ.-80)
इसमें सन्देह नहीं कि डॉ. जैन ने वैशाली के प्राकृत-शोध-संस्थान के आद्य निदेशक के रूप में अत्यन्त परिश्रम तथा बुद्धिमता के साथ इस संस्थान का संयोजन, प्रबंध और विकास किया था। उनके निदेशन-काल में 'संस्थान' से अनेक महत्वपूर्ण शोध-ग्रंथों
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