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आयुर्वेद और पतञ्जलि
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11. पारिभाषिक शब्दावलि
प्रत्येक दर्शन की अपनी पारिभाषिक शब्दावली है। कुछ शब्दों को अन्य दर्शनों के द्वारा यथावत् स्वीकार भी कर लिया जाता है। चरक संहिता और योगसूत्र में योग दर्शन विषयक पारिभाषिक शब्दों का प्रायः यथावत् समावेश किया गया है। यहाँ पर ऐसे शब्दों की सूची दी जा रही है1. संशय
कर्मफल मोक्षपुरुषप्रेत्यभावादयः सन्ति न वेति संशयः। -च. शा. 5/12
संशयः उभयकोटिस्पृग्विज्ञानम्। - योगसूत्र 1/30 पर भाष्य 2. विप्रत्यय
कार्याकार्य-हिताहित-शुभाशुभेषु विपरीताभिनिवेशो विप्रत्ययः। - च. शा. 5/12 3. विपर्यय
विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठितम्। -योगसूत्र 1/8 4. उपसर्ग
अहंकारादिषूपसर्गसंज्ञा। - च. शा. 5/12 5. अनिर्वेद
योगारम्भे सततमनिर्वेदः। - वही 6. वैराग्य
__दृष्टानुअविकविषयवितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम्। - योगसूत्र 1/15 7. नियमन
नियमनमिन्द्रियाणां चेतसि, चेतस आत्मनि, आत्मनश्च। - च. शा. 5/12 8. अध
सर्वप्रवृत्तिष्वघसंज्ञा। - च. शा. 5/12 9. अभिनिवेश
सर्वसंन्यासे सुखमित्यभिनिवेशः। - च. शा. 5/12
12. अन्य प्रतिपाद्य
- चरक संहिता एवं योगसूत्र में प्रकरणवश आये हुए कुछ विषय और भी हैं जिनमें समानता है1. सत्याबुद्धि
सुद्धसत्वस्य या शुद्धा सत्याबुद्धिः प्रवर्तते। यया भिन्नत्यतिबलं महामोहमयं तमः। सर्वभावस्वभावज्ञो यया भवति निष्पृहः। योगं यया साधयते सांख्यः सम्पद्यते यया। यया नोपैत्यहंकारं नोपास्ते कारणं यया। यया नालम्वते किञ्चित सर्व सन्यस्यते यया। याति ब्रह्म यया नित्यमजरं शान्तमव्ययम्। विद्या सिद्धिर्मतिर्मेधा प्रज्ञा ज्ञानं च सा मता। - च. शा. 5/16-17
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