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________________ इस प्रकार का विवरण योगसूत्र में प्राप्त नहीं होता । 6. मोक्ष का स्वरूप आयुर्वेद और पतञ्जलि विपापं विरजः शान्तं परमक्षरमव्ययम् । अमृतं ब्रह्म निर्वाणं पर्यायैः शान्तिरुच्यते । । च. शा. 5/23 संसारी और मुक्त जीव में अन्तर स्पष्ट करते हुए चरक संहिता में मोक्ष का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है ज्ञानं ब्रह्मविदां चात्र नाज्ञस्तज्ज्ञातुमर्हति । - च. शा. 1/154-155 इसी से मिलता-जुलता समाधि का लक्षण योगसूत्र में प्राप्त होता हैतदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः । - योगसूत्र 3/3 तथा तस्मिंश्चरमसंन्यासे समूला: सर्ववेदनाः । ससंज्ञाज्ञानविज्ञानाः निवृत्तिं यान्त्यशेषतः । । अतः परं ब्रह्मभूतो भूतात्मा नोपलभ्यते । निःसृतः सर्वभावेभ्यो चिन्हं यस्य न विद्यते । मुक्त का लक्षण मुक्त जीव का कोई लक्षण इसलिए नहीं है क्योंकि उसके सभी करणों का अभाव हो जाता है 8. मोक्ष शास्त्र Jain Education International नात्मनः करणाभावाल्लिंगमप्युपलभ्यते । स सर्वकरणाभावान्मुक्त इत्यभिधीयते। 7. मोक्ष का मार्ग योग दर्शन में मोक्ष नामक तत्व का उल्लेख नहीं है। विवेक ख्याति के प्रकरण में वीतराग के धर्ममेघ समाधि और उस धर्ममेघ समाधि से क्लेशकर्म की निवृत्ति प्रतिपादित करने वाले दो सूत्र कैवल्य पाद में आये हैं प्रसंख्यानेऽप्यकुसीदस्य सर्वथा विवेक ख्याते धर्ममेघ समाधिः । ततः क्लेशकर्म निवृत्ति । - योगसूत्र 4/29-30 457 - इस अवस्था को जीवन्मुक्त अवस्था कहा गया है। किन्तु चरकोक्त मोक्ष स्वरूप में शरीरेन्द्रिय सत्वात्म के संयोग के भी वियोग का अभिप्राय निहित है। जीवन्मुक्त और चरममुक्त (चरम संन्यास) इन दोनों प्रकार के मोक्ष के लिए जो मार्ग है वही योग का भी मार्ग है ऐसा जीवन्मुक्तों ने और योगियों ने निरूपित किया है एव मार्गोऽपवर्गाय अन्यथा बध्यते । -च. शा. 5/12 च. शा. 5/22 For Private & Personal Use Only एतत् तदेकमयनं मुक्तैर्मोक्षस्य दर्शितम् । तत्वस्मृति बलं येन गता न पुनरागताः ।। अयनं पुनराख्यातं एतद्योगस्य योगिभिः । संख्यातधर्मैः सांख्यै- र्मुक्तैर्मोक्षस्य चापनम् ।। -च. शा. 1 / 150-151 चरक संहिता के काल में मोक्ष शास्त्र नाम से भी कोई शास्त्र अवश्य रहा होगा www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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