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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
कर्मबन्ध मोक्ष की परिभाषा मोक्ष का स्वरूप मोक्षमार्ग मोक्ष शास्त्र मन
शरीर 11. पारिभाषिक शब्दावली
12. अन्य प्रतिपाद्य 1. योग योग शब्द की व्यापकता
योगसूत्र में जहाँ योग शब्द युज समाधौ धातु से निष्पन्न होकर प्रयुक्त हुआ है वहीं चरक संहिता में युज समाधौ दिवादिगणीय (आ.प.); युजिर योगे रुधिादिगणी (उ. प.) और युज् संयमने चुरादिगणीय (प. प.) तीनों धातुओं से निष्पन्न 'योग' शब्दों का प्रयोग हुआ है। समाधि के अर्थ में 'योग' शब्द
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। योगसूत्र 1/1 में प्रयुक्त 'योग' शब्द का अर्थ चित्त की वृत्तियों का निरोध अभिप्रेत है। चरक संहिता में इस अर्थ में अनेक स्थलों पर योग शब्द का प्रयोग हुआ है
योगे मोक्षे च सर्वासां वेदनानां अवर्तनम्।
मोक्षे निर्वृत्तिनि:शेषा योगो मोक्षप्रवर्तकः।। च. शारीर 1/137 इसके अतिरिक्त योगियों के अष्टविध बल (च. शा. 140-141),
सत्याबुद्धि (च. शा. 5/16-19), सद्वृत्त (च. शा. 5/12) के सन्दर्भ में प्रयुक्त योग शब्द समाधि के ही पूर्वोक्त अर्थ में आया है। योग के उपाय या प्रकार
योग दर्शन में चित्तवृत्तिनिरोध अर्थ वाले 'योग' के तीन उपाय बताये गये हैं प्रवर, मध्यम और अवर। समाधिपाद में 'अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः।- योगसूत्र 1/12 द्वारा उत्कृष्ट योगोपाय का वर्णन किया गया है, दूसरे पाद में तपः स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानि क्रियायोगः। योगसूत्र 2/1 द्वारा मध्यम साधकों के लिए योगोपाय बताया गया है, और इसी पाद में आगे यम-नियम आदि अष्टांग योग (योगसूत्र 2/29) का उपदेश अवर साधकों के लिए है। अष्टांग करते हुए पांच नियम बताये गये हैं:- शौचसन्तोषतपः स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानिनियमाः। योगसूत्र (2/32), इसमें सम्मिलित शेष तीन तप आदि पूर्वोक्त क्रियायोग के अंग हैं।
चरक संहिता में ईश्वर को स्वीकार नहीं किया गया है, इस कारण ईश्वर प्रणिधान क्रियायोग का कहीं पर भी उल्लेख प्राप्त नहीं होता। शेष योगांग तप, स्वाध्याय, शौच, सन्तोष का उल्लेख प्राप्त होता है। आयुर्वेदावतरण की भूमिका तप आदि से ही आरम्भ होती है
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