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आयुर्वेद और पतञ्जलि
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2. राजवैद्य चरक
कनिष्क के राजवैद्य चरक का काल 2सरी शती है। 3. चरक संहिता में काप्य और कात्यायन ऋषियों का नाम आया है पर पतञ्जलि का नाम नहीं है। 4. चरक शाखा के ऋषियों में से किसी ऋषि द्वारा अग्निवेश तंत्र की रचना नहीं की गयी अपित प्रतिसंस्कार किया गया है। जबकि अग्निवेश का नाम पाणिनी के गणपाठ में आया है और ये महर्षि पाणिनी से पूर्व विद्यमान थे। 5. चरक संहिता की पुष्पिकाओं में पतञ्जलि नाम न होकर चरक नाम आया है।
यदि शेषनाग के अवतार के रूप में तीन व्यक्तित्वों को पृथक्-पृथक् भी स्वीकार किया जाये तो राम और कृष्ण के व्यक्तित्वों के समान ही पृथक्-पृथक् अस्तित्व सम्भव है। यह निश्चित है कि चरक संहिता की भाषा उपनिषद् कालीन है जबकि योगानुशासन ने सूत्र शैली का अनुसरण किया है। चरक संहिता की भाषा में प्रसादगुण है जबकि भाष्य की भाषा संक्षेपण की प्रवृत्ति लिए है।
योगसूत्र में ईश्वर को स्वीकार किया गया है जबकि चरक संहिता में ईश्वर के अस्तित्व का खण्डन किया गया है। चरक संहिता में सांख्य का स्वरूप ब्रह्म-परिणामवादी है तो योगसूत्र द्वैतवादी होने के साथ-साथ त्रैतवादी है। योगसूत्र में 26 तत्व माने गये हैं जबकि चरक संहिता में 24 तत्व।
इन सब तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि महर्षि चरक और दोनों पतञ्जलि व्यक्तित्व के रूप में भिन्न-भिन्न थे लेकिन अवतार मूल के रूप में शेषनाग से अभिन्न थे। जहां तक व्याकरण-मंजूषा में उद्धृत आप्त की परिभाषा के बाद का उद्धरण वचन का प्रश्न है, चरके पतञ्जलिः उसका अर्थ चरकोपरि पतञ्जलि करते हुए चरक संहिता की व्याख्या पर पतञ्जलि वचन माना गया है। आर्य प्रदीप में चरक की एक पातञ्जल व्याख्या का उल्लेख है इसका नाम पातञ्जलवार्तिक था। यजुर्वेद की चरक शाखा तो महाभारत काल से ही प्राप्त है इस सम्प्रदाय के ही किसी ऋषि ने या ऋषि समूह ने अग्निवेश तंत्र का प्रति संस्कार किया। यजुर्वेद के 86 भेदों में चरक के 12 भेद बताये गये हैं चरकानाम द्वादश भेदाः यथा कपिष्ठला चरकाः।
इसलिए तीनों व्यक्तित्वों को भिन्न मानना ही उचित है। 'आयुर्वेद और पतञ्जलि' का अभिप्रायः
उक्त विषयनाम से स्पष्ट है कि पातञ्जल योगसूत्र, पातञ्जल महाभाष्य एवं आयुर्वेदिक चरक संहिता के वर्ण्य विषय में समानता है अथवा नहीं। साथ ही वर्ण्य विषय का अभिप्राय योगदर्शन की विषय-वस्त से है। अतः योगदर्शन की विषय-वस्तु को केन्द्र में रखकर कुछ तथ्य प्रस्तुत किये जा रहे हैं। दोनों शास्त्रों में सामान्यतः उपलब्ध तथ्य निम्नलिखित हो सकते हैं:
1. योग, योगांग 2. कर्म 3. कर्मफल
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