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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
5. योगसूत्र पर राजमार्तण्डवृत्ति (11वीं शताब्दी) ने भी आचार्य चक्रपाणि के ही अभिप्राय के समान तीनों शास्त्रों के रचयिता के रूप में महर्षि पतञ्जलि के एक व्यक्तित्व को स्वीकार किया है। 6. रामभद्र दीक्षित कृत पतञ्जलिचरित की वन्दना
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि। 7. महाभाष्य पस्पशाह्निक उद्योत का यह वाक्य
योगसूत्रे पतञ्जल्युक्तेः। 8. अथ योगानुशासनम् और अर्थ शब्दानुशासनं वाक्यों में समानता।
___इसके विपरीत तीनों व्यक्तित्वों को पृथक्-पृथक् स्वीकार करने वालों के अपने तर्क हैं1. जे. एच. बुड्स की युक्तियाँ(क) द्रव्य का लक्षण भिन्न-भिन्न होने से और विज्ञानवाद का खण्डन होने से योगसूत्रकार का काल वसुबन्धु के बाद 300-400 ई. ठहरता है। (ख) निरालब्ब सम्प्रदाय विज्ञानवादियों का खण्डन योगसूत्र 3/14-15 एवं 4/14-21 में है। अत: ये वसुबन्धु से परवर्ती हैं। (ग) माघ के शिशपालवध में योगसत्र 1/33 का उल्लेख है अतः ये माघ (7वीं शती) के पूर्ववर्ती है। (घ) सातवीं शती के आसपास ही गौडपाद ने सांख्य कारिका 23 के भाष्य में योगसूत्र 2/30-32 का और पतञ्जलि का उल्लेख किया है। 2. प्रोफेसर जेकोबी की युक्तियाँ(क) पतञ्जलि में योगसूत्र 3/17 में नामतः उल्लेख न करने पर भी भाष्यकार पतञ्जलि के स्फोटवाद का आश्रय लिया है। (ख) योगसूत्र में अन्त:करण का विभुत्व और परमाणु का उल्लेख वैशेषिक दर्शन के प्रभाव से है। (ग) काल की सत्ता को काल्पनिक और क्षणों की सत्ता को वास्तविक मानना सौत्रान्तिक बौद्धों का प्रभाव है। विमर्श1. महाभाष्य के प्रयोग(क) पुष्यमित्रं यजामहे. मित्रं याजयामः, पुष्यमित्र सभा। (ख) चन्द्रगुप्त सभा। (ग) अरुणद् यवनः साकेतम्।
इन वाक्यों के आधार पर स्पष्ट है कि महाभाष्य की रचना पुष्यमित्र के काल में हुई जो ईसा से तृतीय-द्वितीय शताब्दी पूर्व सिद्ध होती है। यही तथ्य (Manander king of Bactria) के साकेताक्रमण काल से भी सिद्ध होता है। चन्द्रगुप्त मौर्य का भी यही काल है।
होता है। यही तथ्य Mananae
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