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________________ आयुर्वेद और पतञ्जलि डॉ. गजेन्द्र कुमार जैन* महर्षि पतञ्जलि के विषय में विद्वानों की दो धाराएँ प्रचलित हैं: (1) महर्षि पतञ्जलि ही चरक के रूप में आयुर्वेद शास्त्र अग्निवेशतंत्र के प्रति संस्कर्ता हैं, पतञ्जलि नाम से पाणिनीय अष्टाध्यायी के भाष्यकार हैं और पतञ्जलि के नाम से ही योगानुशासन के प्रणेता हैं, और (2) तीनों शास्त्रों के कर्ता भिन्न-भिन्न कालों में अवतरित भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं। अत: यहाँ पर व्यक्तित्व निर्णय के विषय में कुछ युक्तियों को प्रदर्शित किया जा रहा है1. महर्षि चरक कुषाणवंशीय राजा कनिष्क के राजवैद्य थे। 2. कृष्ण यजुर्वेद की चरक शाखा के टीकाकार वैश्यम्पायन शिष्य चरक ही अग्निवेशतंत्र के प्रति संस्कर्ता थे। 3. इरावती और चन्द्रभागा (पंजाब प्रदेश की) नदियों के बीच के स्थान कपिस्थल ग्राम में उत्पन्न होने से इनका विशेषण कपिष्ठल था और यह शबर गोत्र अर्थ में प्रयुक्त होता था। महर्षि पतञ्जलि के तीन रूपों में एक व्यक्तित्व स्वीकार करने की पृष्ठभूमि में अनेक ग्रन्थों के वचन उपलब्ध है1. आचार्य चक्रपाणि का चरक संहिता टीका के आरम्भ का श्लोक पतञ्जलि महाभाष्य चरक प्रतिसंस्कृते। मनोवाक्कायदोषाणां हर्केहिपतये नमः।। 2. नागेशभट्ट का वचन व्याकरण मंजूषा में आया है आप्तो नाममनुभवेन वस्तुतत्वस्य कात्स्येन निश्चयवान् रागादिवशादपि नान्यथावादी य, स इति चरके पतञ्जलिः। 3. भाव प्रकाश में वर्णित क्रम के अनुसार में विशुद्ध नामक ऋषि के पुत्र और अनन्त शेषनाग के अवतार थे। 4. वाक्यपदीय ग्रन्थ के ब्रह्मकाण्ड में त्रिकरण शुद्धि के प्रसंग में उपलब्ध श्लोक कायवाग्बुद्धिविषया ये मलाः समुपस्थिताः। चिकित्सालक्षणाध्यात्मशास्त्रैस्तेषां विशुद्धयः। 1/147 के आधार पर वाक्यपदीय टीकाकार पुण्यराज ने अर्थापत्ति से इसका अर्थ महर्षि पतञ्जलि की प्रशंसा लिया है। * उपाचार्य, शासकी। आयुर्वेद महाविद्यालय, आभखो, ग्वालियर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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