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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
आगमों से प्राप्त होता है। श्रावक धर्म में दान एवं पूजा मुख्य है। मुनि धर्म में ध्यान एवं अध्ययन ये दोनों प्रमुख कार्य हैं। इसके बिना रत्नत्रय आराधना नहीं हो सकती। बिना रत्नत्रय के मोक्षमार्ग नहीं, इसलिए मनुष्य के विकास में सहायक इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति एवं क्रियाशक्ति इन तीनों की सूचना ग्रह रश्मियों से प्राप्त होती है। जैन चिन्तकों के अनुसार ग्रह रश्मियाँ फल सूचक निमित्त मात्र हैं। व्यक्ति अपने प्रबल पुरुषार्थ से ग्रहों द्वारा सूचित फलादेश में उत्कर्ष और संक्रमण कर जीवन को मंगलमय बनाता है।
कलं
ग्रंथ-संदर्भ 1. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृष्ठ 31, डॉ. जगदीश चन्द्र जैन।
प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ. 17, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री। जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, पृ. 264, श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री। सूर्य-प्रज्ञप्ति प्रस्तावना, पृ. 30, डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी।
तत्वार्थसूत्र, उमास्वामी, अध्याय 3, सूत्र-1। 6. धवला ग्रंथ, खण्ड-4
सूर्यप्रज्ञप्ति, दशम प्राभृत (18वाँ प्राभृत) सूत्र 52/क/उ
ज्योतिष्करण्डक संस्कृत टीका। 9. तिलोयपण्णत्ती, 1/70 10. दशम प्राभृत, सप्तम प्राभूत, चंदपण्णत्ती-संपादक-मुनिश्री कन्हैयालाल कमल, पं. शोभाचंदा
भारिल्ल। 11. काल प्रमाण, धवला 3/34 । 12. प्राकृत साहित्य में वर्णित ज्योतिष का आलोचनात्मक परिशीलन, पृष्ठ 373, शोध-प्रबंध, डॉ.
जयकुमार उपाध्ये।
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