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________________ 448 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ -कलं + 6 मूल पूर्णिमा और अमावस्या का चन्द्र योग का अधिकार पौर्णिमा अमावस्या कुलनक्षत्र उपकुल कुलोपकुल नक्षत्र नक्षत्र श्रावणी माघी धनिष्ठा श्रवण अभिजित् भाद्रपदी फाल्गुनी उ. भाद्रपद पू. भाद्रपद शतभिषा अश्विनी चैत्री अश्विनी रेवती कार्तिकी वैशाखी कृत्तिका भरणी मार्गशीर्षी जेष्ठी रोहिणी पौषी आषाढ़ी पुष्य पुनर्वसु आर्द्रा 7. माधी श्रावणी मघा आश्लेषा 8. फाल्गुनी भाद्रपदी उ. फाल्गुनी पू. फाल्गुनी 9. चैत्री अश्विनी चित्रा हस्त 10. वैशाखी कार्तिकी विशाखा स्वाति 11. ज्येष्ठी मार्गशीर्षी ज्येष्ठा अनुराधा 12. आषाढ़ी पौषी उ. षाढा पू.षाढा पूर्णिमा और अमावस्या का चन्द्र योग का अधिकार चन्द्रमा जिस नक्षत्र के साथ संयोग करेगा वह मास का नाम होगा- जैसे चित्रा नक्षत्र पर चन्द्रमा पूर्ण कलाओं से युक्त होता है। वह 'चैत्र मास कहलाता है। यह एक मौलिक सिद्धान्त यहाँ तक प्रतिपादित है जो आज तक अन्य ज्योतिष ग्रन्थों में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। श्रावण माह में चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में पूर्ण कलाओं से युक्त होता है तथा माघ मास का अमावस्या सही छः महीने बाद मघा नक्षत्र पर चन्द्रमा रहते हुए अन्धकार की रात्रि होती है। इसी तरह प्रत्येक पौर्णिमा के नक्षत्र मास को सही छः महीने बाद आने वाला नक्षत्र मास अमावस्या का होगा 'दुवालस पुण्णिमासु अमावासासु य चंदेण-णक्खत्तसंजोगो' कुल 28 नक्षत्रों का उल्लेख है, जो अभिजित् नक्षत्र से प्रारम्भ होकर श्रवण आदि उत्तराषाढा पर्यन्त नक्षत्र संस्थान निर्धारित करके विश्वज्योतिर्विज्ञान को एक नये मौलिक चिन्तन का स्रोत प्रतिष्ठापित किया है। सूर्य के ओज स्थान प्रकाश परिधि का निर्णय करते हुए समय, मुहूर्त, रात्रि, दिवस, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत, वर्षसहस्र, वर्षशतसहस्र, पूर्व, पूर्वशत आदि उत्सर्पिणी अवसर्पिणी तक 25 भेदों वाला कालचक्र की प्रतिपत्तियों का उल्लेख है। काल। प्रमाण - (धवला, 3/34) (1) समय-एक परमाणु के एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर मंदगति से जाने का काल। (2) असंख्यात समय __ 1 आवली (3) 4 संख्यात आवली 1 उच्छ्वास, प्राण 1 (4) 7 उच्छ्वास 1 स्तोक 5 1/4 सेकण्ड (5) 7 स्तोक 1 लव 37 1/2 सेकण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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