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सूर्यप्रज्ञप्ति में वर्णित जैनज्योतिष
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मनुष्यों को प्रकाश देते हुए सन्देश दे रहे हैं कि संसार भ्रमण से मुक्ति पाने का यही निश्चित स्थान है। तीन लोक के अन्य किसी भी स्थान से मोक्ष प्राप्त नहीं होता है।
अधोलोक में ज्योतिर्मण्डल नहीं है। परन्तु, सात नरकों के जो पटल हैं वे प्रकाश से सम्बंधित हैं। 'रत्नशर्करा वालुका' आदि। सात पटलों के नाम क्रम से प्रकाश से च्युत होकर अन्धकार की ओर जा रहे हैं।
जम्बूद्वीप के मध्य में सुमेरु पर्वत विराजमान है। पर्वत की समतलभूमि से ऊपर 790 योजना पर तारा मण्डल है। वहाँ से 110 योजन ऊँचाई तक मात्र तिर्यग् लोक व्याप्त हैं। ज्योर्तिलोक को तिर्यग्लोक इसलिए कहा कि सारे ग्रह नक्षत्र सुमेरु पर्वत की प्रदक्षिणा कर रहे हैं। वृत्ताकार में घूमते समय ग्रहों के पीठ सुदर्शन मेरु के तरफ होना चाहिए था। परन्तु ऐसा हुआ नहीं यह एक विचारणीय बिन्दु है। तारामंडल से 10 योजन ऊपर सूर्य, वहाँ से 80 योजन चन्द्रमा, वहाँ से 4 योजन नक्षत्र, से 4 योजन बुध, से 3 योजन शुक्र, से 3 योजन गुरु, से 3 योजन मंगल, से 3 योजन शनि उत्तरोत्तर ऊँचाई पर भ्रमणशील हैं।
सुमेरु पर्वत से 1121 योजन दूरी पर 'भ्रमणवीथी' है। सूर्य 184 मण्डलों में भ्रमण करता है। जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा सतत् भ्रमण कर रहे हैं। प्रथम सूर्य सुमेरु की आग्नेयदिशा से तथा द्वितीय सूर्य वायव्य दिशा से भ्रमण प्रारम्भ करता है। प्रथम चन्द्र ईशान दिशा से तथा द्वितीय चन्द्र नैऋत्य दिशा से भ्रमण प्रारम्भ करता है।
दोनों सर्य के बीच भ्रमण करते समय 5 योजन 35/61 भाग अन्तर होता है। 184 मंडल के 183 अन्तर होते हैं। 1 मंडल का दूसरे मण्डल तक 2 योजन 48/61 भाग का अन्तर होता है। जम्बूद्वीप क्षेत्र एक लाख योजन के विषकम्भ वाला है। प्रत्येक सूर्य 180 योजन अवगाहन करके संचार करता है।
'सूर्यप्रज्ञप्ति' ग्रन्थ में 88 महाग्रहों का उल्लेख प्राप्त होता है। जिनके नाम भी अंकित हैं- इंगालए, वियालए, लोहिअक्खे इत्यादि।
ग्रन्थकार ने पाँच संवत्सर का एक युग माना है- 'ता' पंच संवच्छरिए णं जुगे'। 12वें प्राभूत में पाँच प्रकार के संवत्सर का उल्लेख किया है। (1) नक्षत्र संवत्सर, (2) चन्द्र संवत्सर, (3) ऋतु संवत्सर, (4) आदित्य संवत्सर तथा (5) अभिवर्धित संवत्सर। छः ऋतुओं का प्रमाण, छः क्षय तिथियाँ, छः अधिक तिथियाँ, एक युग में सूर्य और चन्द्र की आवृत्तियाँ और उस ससमय नक्षत्रों का योग और योगकाल आदि का वर्णन है।
'सावण बहुल पडिवए बालबकरणे अभिईनक्खत्ते। सव्वत्थ पढम समये युगस्साआई वियाणहि।। -(ज्योतिषकरण्डक) तुलना 'सावण बाहुल पाडिव रुद्दमुहुत्ते सुहोदये रविणो।
अभिजिस्स पढमजोए जुगस्स आदीइमस्स पुढ।। -(तिलोयपण्णत्ती) जैन आगम के अनुसार नवीन वर्ष का प्रारम्भ श्रावण कृष्ण प्रतिपदा का होता है। इस दिन भगवान महावीर की प्रथम दिव्यध्वनि खिरी थी। युग का आरम्भ श्रावण मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि अभिजित् नक्षत्र, बालव करण, रौद्र
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