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________________ 446 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ सूर्यप्रज्ञप्ति ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय सूर्यप्रज्ञप्ति एवं चन्द्रप्रज्ञप्ति में क्रमशः 6ठे तथा 7वें उपांग हैं। कई ग्रन्थों में सूर्यप्रज्ञप्ति को पाँचवाँ तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति को सातवाँ उपांग लिखा है। सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य आदि ज्योतिष्क चक्र का वर्णन है। इसमें एक अध्ययन 20 प्राभृत, उपलब्ध मूलपाठ 2200 श्लोक परिमाण है। गद्यसूत्र 108 तथा पद्यगाथा 103 हैं। इसी प्रकार चन्द्रप्रज्ञप्ति में भी है। चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्र आदि ज्योतिष्क चक्र का वर्णन है। सूर्यप्रज्ञप्ति प्राचीन उपांग ग्रन्थ है। इसका उल्लेख श्वेताम्बर, दिगम्बर तथा स्थानकवासी तीनों परम्पराओं में प्राप्त है। सूर्यप्रज्ञप्ति के 20 प्राभृतों में खगोलशास्त्र की जितनी सूक्ष्म विचारणाएँ प्रस्तुत हुई हैं, उतनी अन्यत्र कहीं एक साथ प्रस्तुत नहीं हुई हैं। इसका उपक्रम मिथिला नगरी में जितशत्रु के राज्य में नगर से बाहर मणिभद्र चैत्य में वर्द्धमान महावीर के पधारने पर धर्मोपदेश के पश्चात् गणधर गौतम की जिज्ञासा के समाधान हेतु हुआ है। इसमें "मण्डलगतिसंख्या, सूर्य का तिर्यक् परिभ्रमण, प्रकाश्य क्षेत्र परिमाण, प्रकाश संस्थान, लेश्या प्रतिघात, ओजः संस्थिति, सूर्यावरक उदयसंस्थिति, पौरुषी छायाप्रमाण, योगस्वरूप, संवत्सरों के आदि और अन्त, संवत्सर के भेद, चन्द्र की वृद्धि अपवृद्धि, ज्योत्स्नाप्रमाण, शीघ्रगति निर्णय, ज्योत्स्ना लक्षण, च्यवन और उपपात, चन्द्र सूर्य आदि की ऊँचाई, उनका परिमाण एवं चन्द्रादि के अनुभव आदि" विषयों की विस्तृत चर्चा है। अतः यह ग्रन्थ खगोलशास्त्र के चिन्तकों के लिए पर्याप्त उपयोगी तथ्य उपस्थापित करता है। सभी ज्योतिष्क देव पाँच यूथों में विभाजित होते हैं और वे सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। केवल मनुष्य सृष्टि के लिए ही ये सतत् गतिशील हैं ऐसा प्रतीत होता है. यहाँ सर्य-चन्द्र की बहलता के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण जैन सिद्धान्त की लाक्षणिकता के लिये आवश्यक है। मुख्यतः जम्बूद्वीप (मध्यलोक) में दो सूर्य, दो चन्द्रों का होना माना जाता है। समय विभाजन इन ज्योतिर्मय देवों की गति से ही निर्धारित होता है। जम्बूद्वीप और उसके बाद वाले असंख्य द्वीप समुद्रों में सूर्य-चन्द्र हर समय प्रकाश फैला रहे हैं। यथा(1) जम्बूद्वीप में 2 सूर्य 2 चन्द्र (2) लवणसमुद्र में 4 सूर्य 4 चन्द्र (3) धातकीखण्ड में 12 सूर्य 12 चन्द्र (4) कालोदधिसमुद्र में 42 सूर्य 42 चन्द्र (5) अर्ध पुष्करद्वीप में 72 सूर्य 72 चन्द्र 132 चन्द्र आगे मध्यलोक के असंख्यात द्वीपसमुद्रों के सूर्य-चन्द्र परस्पर द्विगुणित संख्या में उपस्थित हैं। ढाई द्वीप के बाहर सौर मण्डल अवस्थित हैं। अर्थात सर्य-चन्द्र औ आदि का भ्रमण नहीं होता है। मात्र मनुष्य लोक में ज्योतिष्क यूथ सतत् गतिशील हैं। मानो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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