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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति में वर्णित जैनज्योतिष डॉ. जयकुमार उपाध्ये* प्राकृत आगम साहित्य का परिचय प्रत्येक धर्म परम्परा में धर्मग्रन्थों का विशेष महत्व है। हिन्दुओं के लिए वेद, बौद्धों के लिए त्रिपिटक, पारसियों के लिए अवेस्ता, ईसाइयों के लिए बाईबिल और मुसलमानों के लिए कुरान का जो महत्व है वही महत्व जैनों के लिए आगम साहित्य का है। आगम अपौरुषेय नहीं है, बल्कि महावीर स्वामी का साक्षात् उपदेश है जिसका संकलन गणधरों द्वारा किया गया है। भाषाशास्त्र की दृष्टि से भी आगम-विज्ञान का अक्षय भण्डार है। अक्षर देह से वह जितना विशाल और विराट है उससे भी कहीं अधिक उसका सूक्ष्म एवं गंभीर चिंतन विशद व महान है। आगम-साहित्य में जैन श्रमणों, आचार-विचार, व्रत-संयम, तप-त्याग, गमनागमन, रोग-चिकित्सा, विद्या-मंत्र, उपसर्ग-दुर्भिक्ष तथा उपवास-प्रायश्चित्त आदि का वर्णन करनेवाली अनेक परम्पराओं, जनश्रुतियों, लोक-कथाओं और धर्मोपदेश का पद्धतियों का वर्णन है। वास्तुशास्त्र, ज्योतिषविद्या, भूगोल-खगोल, संगीत, नाट्य, विविध कलाएँ, प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान आदि अनेकानेक विषयों का यहाँ विवेचन किया गया है। इन सब विषयों के अध्ययन से तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है जिससे हमारे प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास की अनेक त्रुटित श्रृंखलाएँ जोड़ी जा सकती हैं। परम्पराओं से प्राप्त ज्योतिष ग्रन्थ जैन साहित्य विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है, किन्तु इस साहित्य की प्रारंभिक एवं आधारभूत भाषा प्राकृतभाषा है। प्राकृत-साहित्य में सिद्धान्त और दर्शन का जितना विवेचन है उतना ही लौकिक और जीव विज्ञान से संबंधित विषय भी प्रतिपादित हुआ है। त्रिविक्रम ने भी अपने प्राकृत शब्दानुशासन में देश्य भाषाओं की भाँति आर्षप्राकृत की स्वतंत्र उत्पत्ति मानते हुए उसके लिए व्याकरण के नियमों की आवश्यकता नहीं बताई। तात्पर्य यह है कि आर्ष भाषा का आधार संस्कृत न होने से वह अपने स्वतंत्र नियमों का पालन करती है। इसे प्राचीन प्राकृत भी कहा है। साधारणतया मगध के आधे हिस्से में बोली जाने वाली भाषा को अर्धमागधी कहा गया है। अभयदेवसूरि के अनुसार, इस भाषा में कुछ लक्षण मागधी के और कुछ प्राकृत * व्याख्याता, प्राकृतभाषा विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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