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________________ वेदना की गणितीय समतुल्यतादि निश्चलताएँ 443 परिणति है, किन्तु पारस्परिक निमित्त-नैमित्तिक योग व्यवस्था में जैसे कर्मानुभाग का उदय होता है वैसा प्रतिफलन जीव के उपयोग आश्रयभूत होकर आकुलतादि में प्रकट होता है। अत: करण लब्धि की विशुद्धियां जो न केवल साता वेदनीय कर्म के बंध में निमित्त होती हैं वरन् निम्नलिखित रूप में करणों के अंतिम समय में उस कार्य करने में सक्षम भी सिद्ध होती हैं। यथा- क्षायिक सम्यक्त्व के लिये 3 करण, अनन्तानुबंधी कषाय के विसंयोजन के लिए 3 करण, चारित्रमोह के उपशम के लिए 3 करण, चारित्र मोह के क्षय के लिए 3 करण, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के लिये आदि के 2 करण, देशचारित्र के लिये आदि के 2 करण, सकल चारित्र के लिये आदि के 2 करण। उपसंहार करण अर्थात् परिणाम, विभिन्न प्रकार की विशुद्धि की उत्तरोत्तर विभिन्न प्रकार की वृद्धि लिए, विभिन्न काल लेते हुए, ग्रुप ऑपरेशन करते हुए विभिन्न-विभिन्न रूपान्तरणों को कर्म प्रकृतियों में प्रकट करते हुए पहिचान लिये जाते हैं। उनमें अलग-अलग प्रकार की निश्चलता होती है जो विशुद्धि के उत्तरोत्तर परिवर्तन की दर के द्वारा पहिचानी जाती है। जब विशुद्धि के उत्तरोत्तर परिवर्तन की दर में पुनः किसी नई दर से परिवर्तन होता है वहाँ नवीन प्रकार की शक्ति लिए परिणाम प्रकट होते हैं जो नये प्रकार की निश्चलता का आधार बनते हैं। जैसे न्युटन के दूसरे नियम में विस्थापन में परिवर्तन की दर से वेग ज्ञात होता है उसी प्रकार वेग के परिवर्तन की नई दर ऐसे त्वरण को बतलाती है जिसमें उसमें परिवर्तन लाने वाली शक्ति की पहिचान हो जाती है। यही हाल जीव के परिणामों की उत्तरोत्तर विशुद्धि रूप परिणामों की शक्ति का प्रकट होता है जो अधःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्ति करण की विभिन्न प्रकार की निश्चलता वा वृद्धि रूप शक्ति लिये हुए कर्म प्रकृति परिणमन में दृष्टिगत हो जाती हैं। षट् स्थानों में होने वाली हानि-वृद्धि भी इस रहस्य का उदघाटन करती है। इसी प्रकार सातावेदना कर्म के बंध में (जो विशुद्धि रूप में विभिन्न निश्चलताएं लिए परिणामों के होंगे) उसी अनुपात में संबंधित दृष्टिगत होने की संभावना व्यक्त करते प्रतीत होते हैं। इसी आधार को लेकर जीव के विकास रूप अथवा अन्यथा दशाओं का गणितीय शोधाध्ययन अपेक्षित है जो काजुओ कोण्डो द्वारा सूचना तंत्र के या अन्यतंत्र के मोनाड्स (Monads) आदि अवधारणओं पर आधारित होकर कवागुची ज्यामिति वाले वृक्ष के रूप में जीव या पुद्गलों में रूपान्तरण रूप विकास या अन्यथा दशाओं का दिग्दर्शन करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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