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स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
के समूह ( group of transformations) का विस्तार, कणों के मध्य अन्तर्प्रक्रिया, नाभिकीय बलों या निमित्तों (fields ) का निर्धारण आदि ।
फिर भी आइन्स्टाइन ने श्रृंखलाबद्ध प्रक्रिया का उपयोग कर अणु की बंधीशक्ति को विमुक्त करने का अथवा स्कन्ध को विध्वंस ( annihilate) कर एक नया मार्ग वैज्ञानिकों के लिये खोल दिया। हम इसी सम्बन्ध में वेदना द्रव्य के नाश करने, उसे नियंत्रित करने, विमुक्त करने, वेदना भावादि के परिप्रेक्ष्य में उसका अनुसरण करेंगे। क्वान्टम सिद्धान्त भी इस मार्ग का अनुसरण अंततः करता है। और कोण्डो द्वारा निर्मित्त नव सिद्धान्त में भी एक सूची सिद्धान्त बनाने की योजना कवागची उच्चत्तर परिवर्तन क्रम वाले आकाशों (higher order spaces) के आधार पर बनी तथा फलीभूत हुई। ये तीनों सिद्धान्त अत्यंत जटिल आधुनिकतम गणितों का आधार देकर बनाये गये और नित प्रति नई-नई शोधों को प्रोत्साहित करते रहे हैं, ताकि प्रकृति के गूढ़तम रूप से छिपे रहस्यों का पूर्णत: उद्घाटन हो सके। इन तीनों की विधियाँ, प्रारम्भ से ही भिन्न-भिन्न हैं और उनमें आपसी तुलनात्मक अध्ययन भी विगत शताब्दी से अभी तक चलते जा रहे हैं आइन्स्टाइन का दर्शन, क्वांटम सैद्धान्तिकों का दर्शन तथा कोण्डो का दर्शन विभिन्न पथ निर्धारण करते हुए भी अंततः उसी तत्व की खोज में लगे रहे हैं जिसका आविष्कार जैन कर्म सिद्धान्त ग्रंथों में अत्यंत विलक्षण ढंग से किया गया है।
करण लब्धि
करण लब्धि में जो अधःकरण, अपूर्वकरण एवं अनिवृत्तिकरण की प्रक्रियाओं में परिणाम विशुद्धि के ऐसे गणितीय स्वरूप का विवेचन है जो कर्मों के उपशम, क्षयोपशम, क्षयादि में कार्यकारी हो जाती है। यहाँ भी विशुद्धि परिणाम का अर्थ वही है जो आत्मा के ऐसे परिणाम रूप है जो साता वेदनीय कर्म का बंध करते हैं। यह अर्थ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में विस्तार से वर्णित है। एक ओर बंध का कार्य और दूसरी ओर बंधमुक्ति का कार्य-यह विडम्वना रूप इस उत्कृष्ट विशुद्धि का चमत्कार अत्यन्त रहस्यपूर्ण प्रतीत होता है। इस भारतीय परम्परागत विज्ञान का आधुनिक भौतिक, रासायनिक, जीवादि विज्ञानों के सीमांत (frontier) ज्ञान में क्या योगदान हो सकता है, अथवा उसकी गहरी भावनाओं तक पहुंच पाना आधुनिकतम विज्ञान की शोधों का पारस्परिक अवदान हो सकता है। यहां श्रुतसंवर्द्धन के नये प्रयासों का प्रारम्भ हो सकता है। सभी सिद्धान्तों में निश्चलता (invariance) का आधार लिया गया है, रूपान्तरणों के समूह के प्रति अथवा सहचलता (covariance) का आधार लेकर न्याय संगति निमित्त विधानों में लाई गयी है। वादों की तुलना
आइन्स्टाइन के गणितीय परिकल्पित आकाश, काल और पुद्गल की सापेक्षतापूर्ण गणितीय संरचना कुटिल (curved) रूप धारण करती है जिसमें से यदि पुद्गल निकाल दिया जाये तो गणितीय संरचना सरल (flat) रूप धारण कर लेती है। आइन्स्टाइन का मार्ग सापेक्षता धारण किये हुए भी निश्चयात्मक ( deterministic ) माना जाता है, जबकि क्वांटम सैद्धान्तिकों का मार्ग संभावनापूर्ण (probablistic) माना जाता है।
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