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________________ वेदना की गणितीय समतुल्यतादि निश्चलताएँ डॉ. एल. सी. जैन* यहाँ हम वेदना (pathos) को अनुभव के अर्थ या feeling के अर्थ में ग्रहण कर चलेंगे। साधारणतः वेदना साता या असाता रूप में प्रकट होती है। धवलाकार के अनुसार सभी कर्मों की वेदना होती है, वह भी साता रूप अथवा असाता रूप । इस प्रक सिद्धान्त यह बनता है कि कर्म अलग-अलग प्रकृति वाले होते हुए भी, तत्प्रकृतिरूप साता या असाता का अनुभव कराते हैं। इसे हम वेदना का आधार लेकर एक समतुल्यता का सिद्धांत कह सकते हैं, ठीक वैसा ही जो आइन्स्टाइन ने गुरुत्वाकर्षण निमित्त (gravitational field) को गणितीय रूप देने में जड़ माना (inert mass) और गुरूत्वाकर्षणीय मात्रा (gravitational mass) में समतुल्यता सिद्धान्त (principle of quivalence) का आधार बताया था। यही निश्चलता विश्व में व्यापक सापेक्षता सिद्धान्त (principle of eral relativity) के नाम से विख्यात हुई तथा तीन सूक्ष्म प्रयोगों द्वारा परिपुष्ट की गयी। इसके प्रायः दस वर्ष पूर्व प्रकाशित आइन्स्टाइन के सापेक्षता के विशिष्ट सिद्धान्त (special theory of relativity) में न्यायसंगत पाये गये वे प्रकाश की गति से निश्चलता लेकर जो निमित्त-नियम (field-laws) न्याय संगत पाये गये वे लारेज | (Lorentz transformations) के ग्रुप (समूह) को समाधानित करते थे। इसे सरलतम अभिव्यक्ति देने के लिए मिन्कोस्की ने आकाश-काल (space-time) को एक ऐसा सापेक्ष स्वरूप दिया जिसमें वेक्टर (सदिश) तथा टेन्सर की भाषा में विद्युच्चुम्बकीय निमित्त वस्तुओं को अभिव्यक्त किया जाने लगा। इसी में से E=mc2 सूत्र निकाला गया जिसके आधार पर पुद्गलों की अपार शक्ति को प्राप्त किया जाने लगा। सापेक्षता के व्यापक सिद्धान्त में रूपान्तरणों का ग्रुप (समूह) एक व्यापक रूप में किया गया जिसे बिन्दु या निर्देशांक रूपान्तरणों (Point or coordinate transformations) का समूह कहते हैं। निमित्त-वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षणीय नियम इस समूह के प्रति सहचर पाये जाना आवश्यक माने गये तथा इसके लिए उपयुक्त तंत्र (frame) रीमान की आकाश-काल सम्बंधी ज्यामिति (geometry) पायी गई। इसमें भी वेक्टर तथा टेंसर की भाषा ने कुछ अधिक सामान्य रूप लिया। * सचिव, गुलाबरानी कर्म साइन्स म्युजियम, सराफा, जबलपुर (म.प्र.)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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