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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
स. जैनधर्म और वर्ण व्यवस्था. भटटारकमीमांसा. तारणग्रंथ. कर्नाटक के जैन कवि जैसी मौलिक रचनाएं समाज के सामने आ सकीं। प्रेमी जी के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि जैन पत्रिकाओं के सम्पादन में जितना श्रम और समय आपने दिया, यदि उतना समय और श्रम ग्रंथों के सम्पादन तथा मौलिक ग्रंथों के लेखन में लगाया गया होता तो आपके द्वारा आज सृजित साहित्य का चार गुना साहित्य समाज के सामने आ सकता था। निश्चय ही जैनविद्या एवं साहित्य के क्षेत्र में प्रेमी जी का अपूर्व व अविस्मरणीय अवदान है।
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