________________
भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति एवं उनकी गुरु-शिष्य-परम्परा
431
प्रस्तुत उल्लेख में भट्टारक सुखेन्द्रकीर्ति और नरेन्द्रकीर्ति के नामोल्लेखों के पश्चात् श्री देवेन्द्रकीर्तिदेव, भट्टारक श्री महेन्द्रकीर्तिदेव तत्पश्चात् भट्टारक चन्द्रकीर्तिदेव का नाम आया है। प्रथम दो नामों का उल्लेख दिगम्बर जैन नासिया भटटारक जी नारायन सर्किल जयपुर की चरण छतरियों में भी हुआ है। अतः श्री देवेन्द्रकीर्तिदेव महेन्द्रकीर्तिदेव तथा चन्द्रकीर्तिदेव इन भट्टारकों का सम्बन्ध अंवावती-आमेर भट्टारक गादी से रहा प्रमाणित होता है। चन्द्रकीर्ति भट्टारक इस गादी के अन्तिम भट्टारक कहे जा सकते हैं।
आमेर गादी की भट्टारक पट्ट परम्परा इस लेख के आलोक में निम्न प्रकार ज्ञात होती है
भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति प्रथम भट्टारक महेन्द्रकीर्ति प्रथम भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्ति भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति भट्टारक सुखेन्द्रकीर्ति भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिदेव (द्वितीय) भट्टारक महेन्द्रकीर्ति (द्वितीय) भट्टारक चन्द्रकीर्तिदेव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org