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________________ 430 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ जयपुर के दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर पाटौदी के शास्त्र भण्डार में भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति कृत चाँदनपुर महावीर पूजा संगृहीत है। पूजा के तीन पद्य भी डॉ. वर्मा ने अपनी रचना में निम्न प्रकार दिये हैं अथ श्री वर्द्धमान जी की पूजा लिषि (खि) ते। श्री वरयुक्तं वीर जिनेन्द्र चाँदणकाख्ये ग्राम समीपे। वंद्यमनिद्यं सतत वेदे, स्वागत सिद्धै पूर्वभटान्यै।।1।। जयमाल अंबावतीपट्ट सरोजभानु क्षेमेन्द्रकीर्ति जयताञ्जगत्यां। यदीय तौ वेस्वनु भावतश्चं धर्मोमतो भूय सरं रराज।।11।। भट्टारकेन्द्रेण तदीय पट्टा निविष्ट तेनैव सुरेन्द्रकीर्तिना। कृतातराचाल्प सुबुद्धितोर्चा हुयं सुशोध्या कविभि सुज्ञेया।।12।। तुर्ययमाष्टविधुप्रमितेब्दे चैत्र सिते शुभवृत्तमिताद्धि। मंगलक भुवने मनुजानां मे कुरु चैषाकृत वामय केय।।13।। इस रचना का समय विक्रम सम्वत् 1824 बताया गया है। तुर्य-4, यम-2, अष्ट-आठ, विधु (चंद्र)-1 संख्या के बोधक शब्द होने से तथा अंकानां वामतो गति के अनुसार भी रचना काल यही ज्ञात होता है। इस कथन के आलोक में भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति जी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी के अनन्यभक्त कहे जा सकते हैं। रचना प्रकाशित होना आवश्यक है। भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति की शिष्य-परम्पराः दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारक जी सवाई रामसिंह रोड जयपुर की चरण-छतरियों के प्रथम दो अभिलेखों से ज्ञात होता है कि भट्टारक सुरेन्द्रकीति के पदाधिकारी शिष्य सुखेन्द्रकीर्ति थे। तीसरे संवत् 1881 के लेख में भट्टारक श्री नरेन्द्रकीर्ति जी का नामोल्लेख हुआ है। इस सन्दर्भ में दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी का मानस्तम्भ-लेख भी पठनीय है। दक्षिणदिशावर्ती लेख चौदह पंक्ति का है। इसमें 8 से 12 पंक्तियों में भट्टारकों के नामों तथा मानस्तम्भ-निर्माण-तिथि का भी निम्न प्रकार उल्लेख हुआ हैपंक्ति-8 1952 ईस्वीये स्वतन्त्रभारतस्य द्वितीयाब्दे माघ शुक्ल त्रयोदशयां शुक्रपंक्ति - वासरे श्री पं. झुम्मनलाल श्री निवास शास्त्रिभ्यां प्रतिष्ठाप्य शुभवेलायां श्री मूलसंघे नंधाम्नाये वलात्कारपंक्ति -10 गणे सरस्वतीगच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री सुखेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ. नरेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ. पंक्ति -11 श्री देवेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ. श्री महेन्द्रकीर्तिदेवास्तत्पट्टे भ. श्री चन्द्रकीर्तिदेवास्तेषां तत्वावधाने जयपुपंक्ति -12 रीय दिगम्बर जैन पंचायतीय प्रबन्धकारिणी समितेरनुज्ञां लब्ध्वा श्री मानस्तंभारोपणं कृतम्। वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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