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________________ पंक्ति - 1 विशेष इस लेख का समय और विषय-वस्तु प्रथम लेख के समान है। विशेषता यह है कि प्रस्तुत लेख में भट्टारक सुखेंद्रकीर्ति के द्वारा अपने दादा गुरु श्री क्षेमेन्द्रकीर्ति की चरण-पादुकाएँ महोत्सव पूर्वक स्थापित एवं प्रतिष्ठित किये जाने का उल्लेख है। इस प्रकार परदादा और दादागुरु के सम्मान का सुन्दर उल्लेख किया गया है। भट्टारक सुखेन्द्रकीर्ति की गुरु परम्परात्मक सम्मान करने की भावना सराहनीय रही है। (3) पंक्ति - 2 भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति एवं उनकी गुरु-शिष्य परम्परा Jain Education International 429 दक्षिण दिशावर्ती चरण छतरी ( भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति जी के चरण चिन्ह ) अभिलेख मूलपाठ संवत् (विक्रम संवत् ) 1881 माघ मासे शुक्ल पक्षे पंचमी सोमवासरे दुढाहउ देशे सवाई जयनगरे श्रीमन्महाराजाधिराज महाराज श्री सवाई जयसिंह जि राज्य प्रवर्तमाने श्रीमूलसंघे नंद्याम्नाये वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये भट्टारकेन्दु भट्टारक जि छ्री महेन्द्रकीर्तिस्पट्टे भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्ति स्तत्पट्टे भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीर्तिस्तत्पट्टे भट्टारक श्री सुखेन्द्रकीर्तिस्तत्पट्टे जि छ्री नरेन्द्रकीर्ति जि एतेषां मध्ये भट्टारक श्री नरेन्द्रकीर्तिना महमहोत्सव कृत्वा भद्रभावेन श्री सुरेन्द्रकीर्ति गुरोश्चरणयुगलं प्रस्थाप्य प्रतिष्ठितं । पूजकानां कल्याणपरंपरां करोतु । श्रीरस्तु "श्री" भट्टारक आमेर - गादी के उत्तराधिकारी भट्टारक प्रस्तुत अभिलेखों में प्रथम दो लेखों का समय संवत् 1853 ( ईसवी 1910) बताया गया है। जयपुर को इस समय जयनगर कहा जाता रहा है। यह नगर अभिलेखों में दुढाह देश में बताया गया है। प्रथम दो अभिलेखों में अंवावती और वहाँ विद्यमान भट्टारक-गादी पर विराजमान रहे भट्टारकों के नामोल्लेखों के आलोक में कहा जा सकता है कि अंवावती वर्तमान आमेर का प्राचीन नाम है। तीसरा अभिलेख संवत् 1881 ईसवी 1938 का है। इस लेख में भट्टारक सुखेन्द्रकीर्ति के पश्चात् भट्टारक पट्ट के उत्तराधिकारी भट्टारक श्री नरेन्द्रकीर्ति का नामोल्लेख हुआ है। इसमें भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति को गुरु रूप में सम्बोधित कर यहाँ नरेन्द्रकीर्ति भट्टारक द्वारा उनके चरणयुगल महोत्सव पूर्वक स्थापित किये गये थे। ये सभी भट्टारक मूलसंघ के अन्तर्गत नंद्याम्नाय में वलात्कारगण सरस्वतीगच्छ और कुन्दकुन्दाचार्यान्वयी रहे प्रमाणित होते हैं। भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति कृत चाँदनपुर-महावीर-पूजा डॉ. गोपीचंद वर्मा ने अपनी रचना "दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी का संक्षिप्त इतिहास एवं कार्य विवरण" प्रकाशक-रामा प्रकाशन 2636 रास्ता खजानोवालान् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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