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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
पंक्ति -2 त्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदचार्यान्वये अंवावती (माला) पट्टोदयाद्रि
दिनमणितुल्य भट्टाकेन्दु भट्टारक जि छी देवेंद्र (कमण्डल) कीर्तिस्तत्पट्टे भट्टारक जि छी महेन्द्रकीर्तिस्तत्पट्टे भट्टारक जि छी क्षेमेन्द्रकीर्तिस्तत्पट्टे
जि छी सुरेन्द्रकीति जि देवपट्टे भट्टारक जि छी सुपंक्ति -3 खेंद्रकीर्तिना इयं श्री महेन्द्रकीर्ति जि गुरोः पादुका प्रस्थाप्य महोत्सवेन
प्रतिष्ठिता पूजकानां कल्याणावली करोतु श्रीरस्तु शुभं भवतु ।। हिन्दी अनुवाद
. संवत् 1853 में माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि दिन गुरुवार में दुढाहरु देश के सवाई जयनगर में महाराजाधिराज महाराज श्री सवाई प्रताप सिंह जी के प्रवर्तमान राज्य में श्री मूलसंघ के नंद्याम्नाय में वलात्कार गण और सरस्वतीगच्छ-कुन्दकुन्दाचार्यान्वय में अंवावती-पट्ट रूपी पर्वत पर उदीयमान सूर्य समान भट्टारकों में चन्द्र समान भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति जी हुये। इनके पट्ट पर भट्टारक श्री महेन्द्रकीर्ति तथा आपके पट्ट पर भट्टारक श्री क्षेमेन्द्रकीर्ति विराजमान हुए। पश्चात् श्री सुरेन्द्रकीर्ति, भट्टारक पट्टासीन हुये। भट्टारक सुखेन्द्रकीर्ति के द्वारा श्री भट्टारक महेन्द्रकीर्ति के गुरु श्री देवेन्द्रकीर्ति की चरण-पादुकाएँ महोत्सव पूर्वक स्थापित कर प्रतिष्ठित कराई गयीं। यह प्रतिष्ठा अर्चकों का कल्याण करे, लक्ष्मी उनके हो और मंगल हो। सार
. इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि संवत् 1853 के निकट ढुढारी देश था तथा जयनगर (जयपुर) उसका प्रधान था। राजा थे महाराजाधिराज प्रताप सिंह जी। अंवाबती आमेर का प्राचीन नाम रहा है। यहाँ भट्टारक-गादी भी रही है। भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति इस गादी के प्रधान थे। भट्टारक महेन्द्रकीर्ति इनके शिष्य थे। पश्चात् महेन्द्रकीर्ति के शिष्य हुए क्षेमेन्द्रकीर्ति तथा इनके शिष्य हुए सुरेन्द्रकीर्ति। सुखेन्द्रकीर्ति श्री भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति के शिष्य रहे ज्ञात होते हैं। गुरुओं के सम्मान में आपका कार्य स्तुत्य रहा है।
(2) मध्यवर्ती चरण छतरी (पादुकाएँ-भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्ति जी)
अभिलेख-मूलपाठ पंक्ति -1 संवत् 1853 माघ मासे शुक्ल पक्षे पंचमी गुरुवासरे ढुढाह देशे सवाई
जयनगरे महाराजाधिराज महाराज श्री सवाई प्रताप सिंह जी राज्य प्रवर्तमाने श्री मूलसंघे नंधाम्नाये वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंकुदाचायान्वये अंवावती
पट्टोदयाद्रि दिनमणि तुल्य भट्टापंक्ति -2 रकेंदु भट्टारक जि छी महेन्द्रकीर्तिस्तत्पदे भट्टारक जि छी क्षेमेन्द्रकीर्तिस्तत्पद्दे
भट्टारक जि छी सुरेन्द्रकीर्तिस्तत्पद्दे भट्टारक जि छी सुखेंद्रकीर्तिस्तेतेयं श्री क्षेमेन्द्रकीर्ति गुरोः पादुका स्थाप्य महोत्सवेन प्रतिष्ठिता।। पूजकानां कल्याणावली करोतु।। "श्रीरस्तु"
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