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भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति एवं उनकी गुरु-शिष्य-परम्परा
डॉ. कस्तूरचन्द्र जैन 'सुमन'*
गुलाबी नगरी जयपुर में भट्टारकों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। मूलतः वे अंकावती-वर्तमान आमेर के निवासी थे। जयपुर-रामबाग के उत्तर में सवाई रामसिंह रोड पर नारायन सर्किल के निकट दिगम्बर जैन नसियाँ-भट्टारक जी के नाम से प्रसिद्ध स्थली में दिगम्बर जैन मन्दिर सुशोभित है। इस मन्दिर के प्रांगण में अपभ्रंश अकादमी संचालित
है।
मन्दिर के सामने वाले भाग में सुन्दर उद्यान है। इसमें तीन छतरियों का निर्माण हुआ है। निचला भाग रिक्त है किन्तु ऊपरी मंजिल पर तीन कलात्मक छतरियाँ सुशोभित हैं। ये मुख्य मार्ग पर होने से इनके दर्शनों का सभी को अवसर सहज ही प्राप्त हो जाता
ये छतरियाँ अष्टकोणी हैं। श्वेत संगमरमर पाषाण से निर्मित हैं। अष्ट स्तम्भों पर आश्रित हैं। छतरियों के ऊपरी भाग वेलों से अलंकृत दर्शाये गये हैं। पूर्व दिशावर्ती भित्ति के मध्य पूर्व दिशाभिमुख एक लघुकाय कायोत्सर्ग नम्र प्रतिमा अंकित है जिसके बायें हाथ में संयम का उपकरण कमण्डल तथा दायें हाथ में पीछी का आकार प्रदर्शित है।
छतरियों के मध्य में अष्टकोणी श्वेत संगमरमर पाषाण पर चार दल के बत्तीस वर्तुलाकार कमल अंकित हैं। इन कमलों के मध्य में एक चौबीस दलीय कमल भी निर्मित हुआ है। पूर्व दिशाभिमुख चरण-पादुकाएँ (चिन्ह) इन्हीं कमलों पर स्थापित हैं। इन्हीं के निकट संस्कृत भाषा और नागरी लिपि में पूर्व दिशा की ओर से अभिलेखों के मूलपाठ वर्तुलाकार उत्कीर्ण किये गये हैं।
(1) उत्तर-दिशावर्ती चरण छतरी-अभिलेख
(भट्टारक महेंद्रकीर्ति के चरण-चिन्ह) पंक्ति -1 संवत् (विक्रम संवत्) 1853 माघ मासे शुक्ल पक्षे पंचमी (जाप्यमाला)
गुरुवासरे दुढाहरु देशे सवाई जयनगरे (कमंडल) महाराजाधिराज महाराज श्री सवाई प्रतापसिंह जि राज्य प्रवर्तमाने श्री मूलसंघे नंद्याम्नाये (पीछी)
बला* बाँसातारखेड़ा (दमोह) म.प्र.।
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