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अज्ञात जैन विद्वान पं. नन्दलाल जी छावड़ा का साहित्यिक अवदान
मन्नालाल अर उदयचंद माणिकचंदरु जु वाल ।। नंदलाल तिनसौं कही भाषा लिखो बनाय । कहौं अरथ टीका सहित भिन्न-भिन्न समुझाय ।।
इस ग्रन्थ के इन पद्यों से यह भी स्पष्ट है कि उस समय मुनि आचार सम्बंधी कोई ग्रन्थ लोक प्रचलित सरल भाषा में नहीं थे। सामान्य श्रावक भी संस्कृत - प्राकृत भाषा के ग्रन्थों को समझने में कठिनाई महसूस करते थे। अतः सभी जन आसानी से इन ग्रन्थों का स्वाध्याय कर आत्मकल्याण में प्रवृत्त हो सकें, इसी उद्देश्य से पं. मन्नालाल जी आदि की प्रेरणा से पं. नन्दलाल जी ने मूलाचार ग्रन्थ की भाषा - वचनिका लिखी। किन्तु इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि पंडित नंदलालजी इसकी वचनिका पूर्ण नहीं कर सके। मात्र आरम्भिक 516 गाथाओं अर्थात् छठें पिण्ड शुद्धि अधिकार पूर्ण करके सप्तम षडावश्यक अधिकार की पन्द्रह गाथाओं की वचनिका पूर्ण कर पाये थे कि इनकी अचानक मृत्यु हो जाने से यह ग्रन्थ अधूरा ही रह गया, जिसकी पूर्ति अनेक मित्रों की प्रेरणा से पं. जी के मित्र पं. ऋषभदास जी निगोत्या ने इस मूलाचार ग्रन्थ की शेष भाषा वचनिका पूर्ण की। निगोत्या जी ने लिखा है
चौपाई -
दोहा
पूरन षट् अधिकार कराय, पंद्रह गाथा अरथ लिखाय । सोलह अधिक पांच सै सही, सब गाथा यह संख्या लही । आयुष पूरन करि गये, ते परलोक सुजान, विरह वचनिका मैं भयो यह कलिकाल महान् । सब साधरमी लोक कै भयो दुःख भरपूर, अधिर लख्यौ संसार जब भयो शोक तब दूर।। भाषा मूलाचार की पूरन किहिं विधि होय । शल्य बसै सबकै हृदय कारण वण्यो न कोय। हंसराज भूपाल के वासी कारन पाय । आये जयपुर नगर में तिनकूं धरम सुहाय ॥ । जाति निगोया जास की, ऋषभदास तसुनाम, शोभाचंद सुत देव गुरु श्रुत रुचिकों शुभधाम ।। जयचंद अर नंदलाल की संगति करी विशेष । तिनसूं श्रुत धारण करे तजि मिथ्यामत वेष ||
पं. ऋषभदास जी ने मूलाचार की यह अधूरी वचनिका किन-किन इष्टमित्रों की प्रेरणा से और कैसे की ? इस विषय में वे मूलाचार भाषा वचनिका के अन्त में चौपाई छन्द में लिखते हैं
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संघही अमरचंद दीवान ऋषभदास पुनि दूजो जानि । तिनसों हंसराज निति कहैं, ग्रंथ वचनिका पूरन चहैं । । तिनकै लागि रही अधिकाय, ऋषभदास तब किये उपाय । श्री दीवानसूं औरौं कहीं, मुनि ढिग माणिकचंद है सही ।।
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