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________________ वैशाली के सारस्वत सन्त पुण्यश्लोक डॉ. हीरालाल जैन साहित्य वाचस्पति डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव* प्राकृत - जैनशास्त्र के स्तम्भ पुरुष पुण्यश्लोक डॉ. हीरालाल जैन वैशाली के सारस्वत सन्त के रूप में परिगणनीय माने जाते हैं। यह सर्वमत सत्य है कि वह वैशाली के प्राकृत-जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान के संस्थापक निदेशक थे। परन्तु, इससे भी बढ़कर वह ऐसे कूटस्थ महामनीषी थे, जिनकी मनीषा मण्डित छत्र-छाया में रहकर अनेक व्यक्ति मनीषी - पद की गरिमा से सुशोभित हुए। उनके शिष्यों से एक महनीय विद्वत्परम्परा ही स्थापित हो गई। उनकी विद्वता उतनी ही ऊँची थी, जितनी उनकी भद्रता ! उनमें विद्वत्ता और भद्रता का समानान्तर संयोग सुलभ हुआ था। वह आर्ष परम्परा और विद्वत्परम्परा दोनों का एक साथ प्रतिनिधित्व करते थे। डॉ. जैन ने अपने शुभावतरण से मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध नरसिंहपुर जिले के 'गांगई' गाँव को धन्य किया था। लेकिन उनकी प्रतिभा - पयस्विनी दिग्दिगन्तप्रवाहिनी हो गई। आक्षितीश-समुद्र व्याप्त हो गई। वैशाली प्राकृत- शोध-संस्थान से प्रकाशित बुलेटिन - सं0-2 के प्रधान सम्पादक एवं उस संस्थान के तत्कालीन निदेशक डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी के सम्पादकीय वक्तव्य से ज्ञात होता है कि डॉ. जैन का छात्र-जीवन बहुत ही धन्यतम था । जीवनोत्कर्ष के लिए किया गया उनका सारस्वत श्रम अतिशय स्पृहणीय और अनुकरणीय एवं आदर्शात्मक मूल्य से मण्डित था । डॉ. जैन ने अपने ग्रामीण विद्यालय से ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और गाडरवारा एवं नरसिंहपुर से माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध की। वह सन् 1916 से 1920 ई0 तक जबलपुर के राबर्ट्सन कॉलेज के छात्र रहे। उन्होंने सन् 1920 ई0 में बी. ए. की परीक्षा में प्रथम स्थान आयत्त किया और उन्हें राजकीय छात्रवृत्ति प्राप्त हुई, साथ ही पुरस्कार भी मिला। उन्होंने सन् 1922 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से संस्कृत में एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और शोध छात्रवृत्ति भी प्राप्त की। इसी क्रम में उन्होंने एल.एल.बी. की भी परीक्षा पास की। इस परीक्षा में उन्होंने उच्चतम स्थान अधिगत किया। उस समय वकालत का पेशा बहुत ही आकर्षक माना जाता था। परन्तु, उन्होंने सन् 1923 ई. में कारंजा जैन ग्रन्थ-भाण्डार को अपने जीवनाभ्युदय के प्रस्थान-बिन्दु के रूप में * 37, भा. स्टेट बैंक आफिसर्स कॉलोनी, काली मन्दिर मार्ग, हनुमान नगर, कंकड़बाग, पटना - 800020. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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