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प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली
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के एक अधिकारी विद्वान के रूप में विख्यात थे। इनका दृष्टिकोण भी संकीर्ण धर्म-सम्प्रदायों के प्रभाव से सर्वथा मुक्त था। उन्होंने अपनी कन्या का विवाह भी यहीं वैशाली क्षेत्र के एक ब्रह्मर्षि परिवार में किया था और जब कभी संस्थान में आते तो बड़े स्नेह-सम्मान के साथ अपने सम्बंधियों से मिलने जाते। उनकी पुत्री और जामाता भी यहाँ रहने पर उनसे मिलने आते। ये बड़े निर्भीक विद्वान थे, इस कारण डॉ. हीरालाल जी जैन का इन पर बड़ा भरोसा था।
डॉ. जैन और डॉ. टाटिया के बाद संस्थान के निदेशक पद पर डॉ. गुलाबचन्द जी चौधरी आसीन हुए। वे बड़े सरल और सहृदय विद्वान थे। प्राचीन इतिहास के एक अधिकारी विद्वान डॉ. चौधरी दर्शन और व्याकरण शास्त्र में भी निष्णात थे। वे दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे और संस्थान के विकास के लिए उन्होंने कुछ योजनाएँ भी तैयार कर ली थी। किन्तु, विधाता ने उन्हें ऐसा करने का अवसर ही नहीं दिया और वे अचानक संस्थान परिवार को छोड़ चल बसे ।
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डॉ. गुलाबचन्द जी चौधरी के बाद डॉ. नागेन्द्र प्रसाद, डॉ. रामप्रकाश पोद्दार और डॉ. देवनारायण शर्मा ने क्रमशः संस्थान का बागडोर अपने कुशल हाथों में लिया और निदेशक पद की गरिमा को सब प्रकार से सुरक्षित रखने का प्रयास भी किया। इसी काल में वैशाली अभिनन्दन ग्रन्थ का पुनरीक्षित परिवर्धित संस्करण तथा वैशाली क्षेत्र की भाषा बज्जिका पर डी. लीट् शोध प्रबंध का ग्रन्थाकार प्रकाशन हुआ। अभी संस्थान संचालन का गुरुभार डॉ. ऋषभचन्द्र जी जैन के कंधों पर है। वे कठिन परिश्रम और आत्मविश्वास के साथ संस्थान की गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए अनवरत प्रयत्नशील हैं। मेरा मानना है कि डॉ. जैन अपनी इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त व्यक्ति हैं। इनके निर्देशन में संस्थान अपने अतीत के गौरव को अवश्य प्राप्त कर लेगा ।
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