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आचार्य कुंदकुंद और उनके चौरासी पाहुड
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प्रसिद्ध विद्वान श्री देवेन्द्र कुमार जी नीमच वालों ने किया। कुछ का सम्पादन संहिता सूरी पंडित नाथूलाल जी ने किया। सभी पाहुड विधानों का प्राक्कथन जैनरत्न पं. ज्ञानचंद विदिशा ने लिखा।
उपरोक्त विधानों में से पांच विधानों का विमोचन अपने बचपन के साथी राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल जी शर्मा से राष्ट्रपति भवन में पांच बार में कराया। इस प्रकार आचार्य कुंदकुंद के 14 पाहुडों पर महत्वपूर्ण विधान लिखकर पवैया जी अजरअमर हो गये। इसके अतिरिक्त आपने डेढ़ सौ विधान लिखे हैं जो सभी छप चुके हैं। आपकी कुछ पांच सौ पुस्तकों में से अभी तक चार सौ पन्द्रह छप चुकी हैं। इन विधानों में आचार्य धरसेन, पुष्पदंत, भूतबली के षट्खण्डागम पर और आचार्य उमास्वामी के तत्वार्थसूत्र पर और आचार्य समंतभद्र के रत्नकरण्ड पर और अन्य आचार्यों के तत्वज्ञान तरंगिणी, आचार्य नेमीचंद्र के गोमटसार, द्रव्य संग्रह आदि ग्रंथों पर विधान लिखे। श्रवणबेलबोला में समयसार विधान हुआ। वहां के भट्टारक चारुकीर्ति जी ने आपका बहुत सम्मान किया और पचपन सौ रुपये देकर भक्त कवि की उपाधि दी। आप स्वतंत्रता सेनानी हैं, तीन बार जेल यात्रा कर चुके हैं। निरंतर 92 वर्ष की आयु में भी लिखते रहते हैं। आपकी आन्तरिक भावना है कि आचार्य कुंदकुंद के शेष पाहुड अगर मिल जायें तो उन पर भी विधान लिखे जायें। इसी पवित्र भावना के साथ आचार्य कुंदकुंद के चरणों में अपना प्रणाम करते हैं।
आपने पच्चीस हजार गीत लिखें हैं। इनमें से अभी तक दो हजार छपे हैं।
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