________________
आचार्य कुंदकुंद और उनके चौरासी पाहुड
415
19.
दिन होता है तब भारत में रात होती है और जब भारत में दिन होता है तो विदेह में रात होती है। अतः आप विदेह में निराहार ही रहे। आठ दिन बाद प्रभु की वंदना करके ऋद्धि बल से भारत पधारे और दक्षिण में पोन्नूर पर्वत पर आकर विश्राम किया। आप अट्ठाईस मूलगुणों का पालन करते हुये निर्विकार रहते थे। तेरह प्रकार का सम्यक् चारित्र पालन करना आपका धर्म हो गया था। परन्तु तपस्या में रत आचार्य श्री को कई वर्ष के पश्चात् पश्चात् सीमंधर स्वामी की सुनी हुई दिव्यध्वनि का सार ग्रंथ रूप में लिखने का भाव हृदय में जाग्रत हुआ और ताड़-पत्र पर ग्रंथ लिखने लगे। अपने जीवनकाल में उन्होंने चौरासी पाहुडों की रचना की, जिनके नाम निम्न हैं:अंग पाहुड (सार)
आचार पाहुड अष्ट पाहुड
आराधना सार (आराहणा पाहुड) आलाप पाहुड
6. अभिषेक पाठ आयरिय भक्ति
उत्पाद पाहुड उघ्रात पाहुड
एयक्त पाहुड कर्मविपाक पाहुड
क्रम पाहुड क्रियासार पाहुड
क्षपण सार 15. गय पाहुड
चरण पाहुड 17. चारित्र पाहुड
कुरल काव्य (तमिल) चूर्णि पाहुड
चूली पाहुड चिक्क पाहुड
जीव पाहुड 23. जोणी सार
तत्वसार पाहुड दिव्व पाहुड (दिव्य)
26. दृष्टि पाहुड दर्शन पाहुड
28. द्रव्य पाहुड 29. नय पाहुड
30. नियमसार पाहुड 31. निदान पाहुड
नित्य पाहुड निताय पाहुड
नोकर्म पाहुड पंच पाहुड
पंचास्तिकाय पाहुड पर्याय पाहुड
प्रमाण पाहुड पुष्प पाहुड
40. प्रकृति पाहुड प्रवचनसार पाहुड
प्रतिक्रमण 43. बंध पाहुड
पांच वर्ण पाहुड बुद्धि पाहुड
बोध पाहुड 47. वारस अणुवेक्खा
परिकर्म टीका 49. भाव पाहुड
भावसार पाहुड भक्ति संग्रह
52. भया पाहुड मोक्ष पाहुड
54. मूलाचार
.
21.
24.
25.
27.
32.
32
34.
नाव
41.
42.
प्रति
45.
16.
51.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org