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________________ आचार्य कुंदकुंद और उनके चौरासी पाहुड ले. जितेन्द्र सौगानी* आज से दो हजार वर्ष पूर्व दक्षिण प्रांत के कोण्डकुड ग्राम में एक श्रावक परिवार आपका जन्म हआ। आप बचपन से ही कशाग्र बद्धि के थे। एक बार अंतिम श्रुतकेवली आचार्य भ्रदबाहु के शिष्य श्री विशाखाचार्य जिनके उपनाम अरहद बली और गुप्तीगुप्त थे। संघसहित वे कोण्डकुंड ग्राम में आये और उनकी दृष्टि बालक कुंदकुंद पर पड़ी। कुंदकुंद को होनहार जानकर उनके माता-पिता से चर्चा की और उनकी आज्ञा लेकर कुन्दकुन्द को अपने संघ में ले गये और उन्हें धर्मशिक्षा से सम्पन्न करके ग्यारह वर्ष की आयु में मुनि बना दिया। कुंदकुंद अर्तमन से बहुत प्रसन्न हुए। वे आचार्य भद्रबाहु स्वामी को परम्परागुरु मानने लगे और श्री विशाखाचार्य को अपना दीक्षा गुरु मानकर मुनि धर्म का पालन करने लगे। मुनि होते समय आपकी आयु मात्र ग्यारह वर्ष की थी। गहन तपस्या करके आप ऋद्धिधारी मुनि हो गये। एक दिन विदेह क्षेत्रस्थ श्री तीर्थकर को वन्दन करते हुए श्री प्रथम तीर्थकर सीमंधर स्वामी के दर्शन का भाव जागा और विदेह क्षेत्र जाने का निश्चय कर दिया। उसी समय पूर्वजन्म का एक मित्रदेव अचानक आपके दर्शन को आया और चर्चा करके अपना परिचय दिया और आचार्य कन्दकन्द को अपने साथ विदेह ले गया। विदेह पहुंचते ही आप भगवान सीमंधर स्वामी के समवशरण में पहुंचे। तीन प्रदक्षिणा देकर भक्ति सहित वन्दन किया और भगवान की दिव्यध्वनि सुनने लगे। विदेह क्षेत्र में मनुष्यों का शरीर पांच सौ धनुष का होता है किन्तु इनका शरीर केवल साढ़े तीन हाथ का था। समवशरण में उपस्थित वहां के चक्रवर्ती ने आपको देखकर भगवान से निवेदन किया कि यह ईलायची के बराबर कौन है। भगवान की दिव्यध्यनि में आया कि ये भरत क्षेत्र के आचार्य कुन्दकुन्द हैं तुरन्त ही चक्रवर्ती ने आपकी वंदना की और समवशरण में उपस्थित सभी जनों ने आपको प्रणाम किया। दिव्यध्वनि में अपना नाम आते ही आचार्य कुन्दकुन्द अपने को महाभाग्यशाली मानने लगे और आचार्य कुन्दकुन्द समवशरण में आठ दिन तक दिव्यध्वनि का लाभ लेते रहे। आहार के हेतु एक दिन भी समवशरण के बाहर नहीं गये क्योंकि जब विदेह में * बहुरंग स्टोर, इब्राहिमपुरा, भोपाल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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