________________
केरली संस्कृति में जैन योगदान
393
ने Indian Serpent Lore के लेखक Vogel का यह अभिमत भी उद्धत किया है कि "The divine serpents are many headed." पुलवन जाति के लोग इस कला में प्रवीण होते हैं। ये भी निम्न वर्ग के माने जाते हैं।
लोकवार्ता (Folklore) संबंधी इस पुस्तक की भूमिका में श्री वी. वनममलै ने अपना यह स्पष्ट मत व्यक्त किया है कि, "Any influence on folklore by Aryan culture is marginal." कण्णगी कथा का जैन संबंध
कण्णगी और कोवलन जैन दंपत्ति थे। उनकी करुण कहानी तमिल में केरल के युवराजपाद इलंगो ने लिखी थी। कण्णगी का केरल में कोडंगल्लूर नामक स्थान पर मंदिर बना था। इस दंपत्ति की जीवन गाथा अब लोकवातौ के रूप में विभिन्न रूपों में केरल में पुनरावृत्त ओर अभिनीत होती है। श्री चूंडल के अनुसार कण्णगी को भद्रकाली का रूप दिया गया, उसके बाद वह काली बनी और श्रीकुरुम्ब बना दी गई जो कि इस समय कोडगल्लूर के भगवती मंदिर की देवी हैं तथा जिसमें कण्णगी के जीवन का घटनाएं कुछ विकृति के साथ प्रति वर्ष दोहराई जाती हैं। इस देवी को अब दुर्गा और पार्वती भी कहा जाने लगा है। कण्णगी वार्ता के केरल के विभिन्न स्थानों में कम से कम 6 प्रकार पाए जाते हैं। उससे स्त्रबंधित गीत तोट्टम् पाडकल कहलाते हैं।
कण्णगी से संबंधित एक उत्सव कोडंगल्लूर में होता है जिसे भरणी उत्सव कहते हैं। उसके मंदिर को अपवित्र आदि किया जाता है। पहले उस मंदिर पर जीवित मुर्गे फेंके जाते थे जिसे केरल सरकार ने बंद कर दिया है। इसी प्रकार अश्लील गाने, गालियों आदि का भी चलन था। अब केरल सरकार अश्लीी कथन जो करने वालों को पकड़ती है। श्री चूंडल ने लिखा है कि इस उत्सव में चैट्टी लोग जो ----- निम्न वर्ग में आते हैं, अधिक संख्या में भाग लेते हैं। वे यह भी पृ.-67-68 पर सूचित करते हैं कि कुम्माटी लोगों का गोमटेश्वर से संबंध है तथा "Kummatti is a Malayam-Tamil word, and it reminds us of the influence of Vaisyas mainly merchants, were these who took part in it. It seems that Kummatti was invented to unlock Jainism." (P.69) रथोत्सव
केरल के अनेक मंदिरों में रथोत्सव मनाया जाता है। इसके संबंध में यह अनुमान लगाया गया है कि इस पर बौद्ध प्रभाव है। गजेटियर (पृ.-238) का कथन है कि, "It is contended by some writers that the temple processions in Kerala own much of their features to Buddhistic ritualistic performances. The elephant procession (Anal Ezhunnallippu) with its accompaniments of Muthukuda, Alavattam, Venchamaram etc. has marked similarity to the processions of the Buddhists." केरल के इतिहास के जानकार यह भलीभांति जानते हैं कि सातवीं सदी में जब चीनी यात्री ह्वेनसांग केरल में आया था तो उसे दिगंबर साधु बहुत अधिक संख्या में देखने को मिले थे और यह कि बौद्ध धर्म केरल से नौवीं सदी में लुप्त ही हो गया था। ऐसी स्थिति में लगभग एक हजार वर्ष के बाद भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org