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________________ प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली ( वासोकुण्ड ) का अतीत गौरव और वर्तमान डॉ. देवनारायण शर्मा* भगवान महावीर के जन्म स्थान वासोकुण्ड में उनके उपदेशों के प्रचार-प्रसार हेतु एक स्नातकोत्तर शिक्षण संस्थान की स्थापना का निर्णय राज्य सरकार का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कदम था और अपने इस कदम को गौरवान्वित करने के लिए उसने संस्थान के प्रथम निदेशक पद पर प्राकृत- जैनशास्त्र के एक उदार अप्रतिम विद्वान डॉ. हीरालाल "जैन को नियुक्त किया। इस नियुक्ति ने न केवल संस्थान को अपितु, इस क्षेत्र में कार्यरत राज्य के अनेक शीर्षस्थ विद्वानों को भी अप्रत्याशित लोकप्रियता प्रदान की। डॉ. जैन के छात्र बनने का सौभाग्य मुझे दो वर्ष पश्चात् प्राप्त हुआ, किन्तु उनके सानिध्य का लाभ मुझे प्रारम्भ से ही मिल चुका था। क्योंकि मैं सरकार के ऐसे पद पर था, जहाँ संस्थान के प्राध्यापक और लिपिक दोनों प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए जाया आया करते थे। मैंने डॉ. जैन को एक उदार हृदय प्रशासक तथा महान प्रतिभासम्पन्न, विनयशील शिक्षक के रूप में देखा था। वे धर्म-सम्प्रदाय के राजनीतिकरण के सर्वथा विरोधी थे। वे अपनी 'जैन' उपाधि के सम्बन्ध में कहा करते कि मेरे अन्य भाईयों के नामों के साथ तो अपनी कुल - परम्परागत उपाधि (मोदी) ही है, किन्तु, मेरे साथ यह विशेष उपाधि जुड़ गयी है। पर, मैंने अपने लड़के के नाम के साथ परम्परागत उपाधि को ही रहने दिया है। यह मुझे अच्छा भी लगता है। उनका जीवन भीतर-बाहर एक जैसा था। वे सदा कहा करते कि 'यदि आप निष्कपट और निर्मल हृदय के हैं तो इस सच्चाई की अनुभूति आपकी नाक के सामने रहने वाले आपके पड़ोसी को भी होनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर अपने को निश्छल -निर्मल बताना व्यर्थ है। एक शिक्षक के रूप में भी वे एक कठोर परिश्रमी और उदार हृदय थे। यदि कभी पद सम्बन्धी व्यस्तता के कारण उन्हें पाठ्यग्रन्थ देखने का अवसर नहीं मिलता, वे वर्ग में आने के तुरत बाद छात्रों के सामने निःसंकोच अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए उस ग्रन्थ के स्थान में छात्रोपयोगी अन्य साहित्य अथवा दर्शन सम्बन्धी विषय पर ही रोचक चर्चा करते और वर्ग ज्ञान-वर्द्धन के साथ विशेष आकर्षण का केन्द्र बन जाता। उनकी अध्यापन - शैली इतनी आकर्षक और प्रेरक होती थी कि वर्ग के छात्रों की तो बात ही क्या, * पूर्व निदेशक, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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