SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केरली संस्कृति में जैन योगदान 389 जैन धर्म में अष्ट मंगल द्रव्यों का बड़ा महत्व है। मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त ईसा की पहली-दूसरी सदी की कुछ जैन प्रतिमाओं के साथ या जैन आयागपट के रूप में इन ही अष्ट मंगल द्रव्यों का अंकन पाया गया है। कला और स्थापत्य इन क्षेत्रों में भी केरल के जैन शायद सबसे अग्रणी रहे हैं। कुणवायिलकोट्टम का जैन मंदिर, जिसे डच लोगों ने नष्ट किया बताया जाता है, केरल के मंदिरों यहाँ तक कि वहाँ की मस्जिदों के निर्माण के लिए आदर्श था। मालाबार मेनुअल खंड 1, पृ.-218 में विलियम लोगन्स ने इस संबंध में लिखा है- “The Jains do, however, seem to have left behind one of their peculiar styles of temple architecture, for the Hindu temples and even Muhammadan mosques of Malabar are all built in the style peculiar to the Jains, as it is still to be seen in the Jain Bastis at Mudbidri and other places in the South Canara district.” मंदिरों की इस शैली के सम्बन्ध में लोगन्स ने प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता फर्गुसन का यह मत उद्धृत किया है कि मूडबिद्री या तुलु प्रदेश के लगभग सभी मंदिर जैनों के हैं। उनकी निर्माण शैली न तो द्रविड़ है और न ही उत्तर भारतीय बल्कि उसका साम्य नेपाल के मंदिरों से अधिक है। इनके स्तंभ ऐसे लगते हैं मानों लकड़ी के चौकोर लढे ही हों और बरामदों की ढलवां छतें काष्ठ मंदिरों का स्मरण दिलाती हैं। लोगन्स ने इस शैली की व्यापकता कन्याकुमारी तक बताई है। मस्जिदें भी इसी शैली में क्यों बनीं इसका कारण भी लोगन्स ने यह बताया है कि नौ मस्जिदें तो जैन मंदिरों के स्थान पर बनी हैं उनके साथ मंदिरों की भूमि भी मस्जिदों को दे दी गई। पहले मंदिरों को ज्यों का त्यों उपयोग में लाया गया किन्तु बाद में यही शैली अपना ली गई। । केरल में जैनों ने चरणों (footprints) गुहा-मंदिरों (cave temples) शिला-शय्याओं (rock-beds) छतरीनुमा शिलाच्छादित समाधि-स्थलों टोपी कल्लु Topikallu, kudakkal आदि का भी निर्माण किया और मूर्ति कला में भी यथेष्ट योगदान किया। श्री ए. श्रीधर मेनन अपनी पुस्तक Social and Culture History of Kerala में लिखा है- "The Jain relies form an importnt part of the sculptural heritage of Kerala." अनेक जैन मंदिर मस्जिदों के रूप में परिणत कर दिए गए। इसी प्रकार अनेक जैन मंदिर आज शिव, विष्णु अथवा भगवती मंदिर के रूप में परिवर्तित हैं। जैन कला और स्थापत्य का आकलन करते समय इनको भी ध्यान में रखना उचित होगा। इसमें एक कठिनाई यह भी आती है कि स्पष्ट संकेतों के होते हुए भी इनके संबंध में कुछ कथाएं प्रचलित कर दी गई हैं जिससे इतिहास धूमिल हो गया है। मंदिरों की बहलता जैनों के कारण यह सभी जानते हैं कि प्राचीन समय में और कुछ अंशों में आज भी वैदिक धर्म का मुख्य लक्षण यज्ञ करना रहा है। इसके लिए यज्ञशालाएं हुआ करती थीं जबकि जैन मूर्तियों की पूजा करते थे और अब भी करते हैं। इसके लिए मंदिरों का निर्माण किया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy