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________________ 388 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ चंद्रोन्मीलन प्रणाली कहने लगे थे। चन्द्रोन्मीलन के व्यापक प्रचार के कारण घबड़ा कर दक्षिण भारत में केरल नामक प्रणाली निकाली गयी है। केरलप्रश्नसंग्रहख, केरलप्रश्नरत्न, केरलप्रश्नतत्वसंग्रह आदि केरलीय प्रश्न ग्रंथों में चन्द्रोन्मीलन के व्यापक प्रचार का खंडन किया है "प्रोक्तं चन्द्रोन्मीलनं दिक्वस्त्रैस्तच्चाशद्धम"। पाठक स्वयं देख सकते हैं कि इस उद्धरण में यह कह दिया गया है कि चंद्रोन्मीलन का कथन दिक्वस्त्रै ने किया है, वह अशुद्ध है। दिक्वस्त्र का अर्थ है दिशा ही जिनके वस्त्र हैं अर्थात् दिगम्बर जैन मुनि। केरल में एक ग्रंथ प्रश्नचूड़ामणि नाम का भी मिलता है। वह भी ज्योतिषाचार्य के अनुसार जैन आचार्य द्वारा प्रणीत हो सकता है। उसके अंत में "ऊँ शान्ति श्री जिनाय नमः" लिखा है। डॉ. नेमिचन्द्र के अनुसार केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणि का रचनाकाल 13वीं सदी का मध्य भाग हो सकता है तथा उसके रचयिता समंतभद्र हैं जो कि आयुर्वेद और ज्योतिष के विद्वान थे। वे कांची के समंतभद्र से भिन्न हैं। मांसाहार केरल के लोगों के आचार-विचार के संबंध में जैनधर्म के प्रभाव का विश्लेषण केरलचरित्रम् में उपलब्ध है। यह इस प्रकार है- "हिन्दुओं के आचार-विचार में बौद्ध-जैन धर्मों का काफी प्रभाव मिलता है। मांसाहार का वर्जन इसमें प्रमुख है।" पृ.-323. जरा विचार करें, बौद्ध धर्म में तो मांसाहार का वर्जन नहीं है। स्वयं गौतम बुद्ध ने 'शूकर मांस का भक्षण किया था।' उन्होंने अपने जीवन काल में ही तीन प्रकार से प्राप्त मांस के भक्षण की अनुमति अपने अनुयायियों को दी थी। महायानियों ने आगे चलकर उसमें दो प्रकार और जोड़ दिए। मांसाहार की अनुमति अवश्य ही एक कारण है कि बौद्ध धर्म मांसाहारी देशों में फैल गया। इसलिए मांसाहार के वर्जन का श्रेय जैनधर्म को ही दिया जाना चाहिए। केरल के इतिहासकार श्रीधर मेनन ने लिखा है कि केरल अठारहवीं सदी तक शाकाहारी रहा। बौद्धधर्म तो इस सदी से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व ही केरल से लुप्त हो चुका था। जिस धर्म के लोग मांस खाते हों, उसे शाकाहार का श्रेय कैसे दिया जा सकता है। अष्टमंगल-द्रव्य . केरल में 'तालप्पोलि' नाम के एक उत्सव में अष्टमंगल द्रव्यों का प्रयोग भी जैन प्रभाव की सूचना देते हैं। डॉ. के. के. एन. कुरुप ने भगवती और अन्य मंदिरों में इस उत्सव के संबंध में यह मत प्रकट किया है, "The cult of Talappoli in shirnes and Bhagavti temple of Kerala is a legacy in which the Jains had their contribution in shrines of Kavus of North Malabar where Tayyattam of Bhagavati is performed, the practice of virgin is also observed in festivals. The virgin girls who had observed several ritual like holy bath and clad in white clothes proceed with Talappoli before the Teyyam of Bhagavati; In festival and other occasions the eight auspicious articles like umbrella, conch. Swastik, Purna kumbha and .......... are provided for properity and happiness as a tradition. This custom is also relating to Jainism." (p. 9. Aspects of kerala History and culture). जैन विधि-विधान और स्थापत्य कला से परिचित यह जान सकेंगे कि शाहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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