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केरली संस्कृति में जैन योगदान
राजमल जैन*
एक जैन लेखक के लिए उपर्युक्त विषय पर कलम चलाना शायद अपने मुंह मियां मिठू बनने के समान लग सकता है किन्तु जब यह सुनने को मिलता है कि केरल के जीवन पर जैनधर्म की कोई छाप नहीं है, तो अधिक कष्ट होता है कि प्राचीन काल की सबल जैन परम्परा को किस प्रकार शून्य कर दिया जाता है। इस कारण यहां संक्षेप में इस योगदान की चर्चा की जाएगी। पक्षपात के दोष से बचने के लिए संबंधित स्रोत या लेखक का नाम भी दे दिया गया है। प्राकृत, मलयालम और प्राचीन तमिल
प्राचीन काल में जैन शास्त्रों की प्रिय. भाषा प्राकृत ने मलयालम को प्रभावित किया है। यही नहीं, जैन मणिप्रवाल भाषा शैली तथा संस्कृत के प्रयोग में भी अग्रणी रहे हैं। कुछ प्राकृत शब्द तो आज भी मलयालम में प्रचलित हैं। केरल गजेटियर के खंड-2, पृ.-236 पर यह मत व्यक्त किया गया है, "The impact of the Jain terminology on Malayalam is detected by the presence of loan words from Prakrits of Ardhamagadhi, Jain Maharastri and Jain Saurseni than (Accuda), Stamaym (Atthamava), Ambujam (Ambuya), jagam (Jaga), Yogi (Jogi), Narayam (Narayam), Prakajam (Pamkava), Makaviram Magasira), Vairam (Vavara), Vivegikaga) (Vivega) Vedivan (Veddiava) are some such words." तमिल सहित द्रविड भाषाओं पर जैन प्रभाव
दक्षिण भारत की प्रादेशिक भाषाओं के आकार और विकास में जैनों की प्रमुख भूमिका रही है यह तथ्य सभी निष्पक्ष भाषाविद् अच्छी तरह जानते हैं। संस्कृत का प्राधान्य विशेषकर केरल में बहुत बाद की बात है। ब्राह्मण वर्ग ने तो संस्कृत को अपने लिए सुरक्षित रखा था। केरल के अत्यंत सम्मानित समाज सुधारक श्री चट्टम्पि स्वामी और नारायण गुरु का संघर्ष इसका उदाहरण है। प्राचीन तमिल साहित्य भी केरल की बहुमूल्य विरासत है। उसके संपोषण में जैनों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। (आठवीं सदी तक तमिलनाडु और केरल का इतिहास एक ही रहा है।) गजेटियर पृ.-235-236 पर ठीक ही लिखा है कि, "The earliest votaries of Dravidian literature have been Jains- Robert Caldwell most pertinently remarks 'Doubtless the Jains themselves * बी-1/324, जनकपुरी, नई दिल्ली - 110058.
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