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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
कोसल (अयोध्या), वत्स (कौशाम्बी) और पंचाल (अहिच्छत्रा) के तीन महत्वपूर्ण स्वतंत्र राज्य थे जिनके शासकों की लम्बी श्रृंखला का परिचय उनके सिक्कों से मिलता है। यदि खारवेल मथुरा तक गया होता तो इन राज्यों में से कम से कम दो को रौंद कर ही जाता। यह कल्पनातीत है कि वह इन राज्यों के बीच से जाय और उनका उल्लेख न करे। स्मरणीय है कि प्रथम अभियान में ऋषिक नगर तक पहुंचने में सातकर्णी का उल्लेख करना वह नहीं भूलता। यदि मथुरा तक जाता तो अभिलेख में इन राज्यों का उल्लेख अवश्य होता; अपने समय में इन राज्यों का महत्व कम नहीं था। उनके उल्लेख के अभाव में खारवेल के मथुरा तक पहुंचने की कल्पना नहीं की जा सकती। पंक्ति 11 एवं 12 में स्पष्ट संकेत है कि वह मगध के आगे उत्तरापथ की ओर गया ही नहीं।
ग्यारहवें वर्ष में उसने अपना तीसरा अभियान पिथुण्ड नगर के विरूद्ध किया था। इसके सम्बन्ध में शशिकान्त का अनुमान है कि वह दक्षिण दिशा में होगा। पिथुण्ड की पहचान लोग टालमी वर्णित पितिन्द्र (Pityndra) से करते हैं जिसे उसने मैसोलिया (Maisolia) और अर्वरनोई (Arvarnoi) का प्रमख नगर बताया है। वह मैसोलिया (Maisolia) के अन्तर्गत में गोदावरी और कृष्णा के बीच के तटवर्ती भू-भाग में था। यह भी अनुमान किया जाता है कि वह विजयपुरी अमरावती और विजयवाड़ा के आस-पास आन्ध्र पथ में कहीं रहा होगा। काशी प्रसाद जायसवाल ने समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में उल्लिखित अवमुक्त के साथ इसकी समता देखने की चेष्ट की है। यदि जायसवाल का अनुमान ठीक हो तो अविमुक्त क्षेत्र को ब्रह्मपुराण में गौतम (गोदावरी) के तट पर कहा गया है। खारवेल के अभियान वर्णन से भी यही झलकता है कि पिथुण्ड कलिंग के पास ही कहीं दक्षिण सीमा पर गोदावरी नदी के आस-पास रहा होगा।
बारहवें वर्ष में खारवेल ने अपना चौथा अभियान उत्तरापथ के राजाओं के विरूद्ध किया था। पर अभिलेख की पंक्तियाँ स्पष्ट न होने के कारण इस अभियान के स्वरूप का अनुमान नहीं किया जा सकता। इतना ही स्पष्ट है कि इस अभियान में वह पाटलिपुत्र आया और मगध नरेश वृहस्पतिमित्र (बहसतिमित) ने उसकी अधीनता स्वीकार की। बारहवें वर्ष के प्रसंग में ही अभिलेख में पाण्ड्य की ओर भी अभिमान करने की बात ज्ञात होती है। इस अभियान में थल सेना के साथ नौ सेना के प्रयोग की भी बात भी कही गयी है। यह भी वर्णन है कि उसने उसी वर्ष पाण्ड्य राजा से बड़े-बड़े हाथी-जहाज छीने या बलपूर्वक भेंट में लिये। इसके अतिरिक्त उसने हीरे, जवाहरात, हाथी-घोड़े तथा अन्य उपहार भी प्राप्त किये।
खारवेल के इन अभियानों का वर्णन अभिलेख में प्राप्त होता है। उससे यही होता है कि उसके अभियानों का उद्देश्य राज्य सीमा का विस्तार न होकर केवल सम्पत्ति प्राप्त करना ही रहा है। पिथुण्ड के गदहों के हल से जुतवाने की बात से ऐसा अवश्य लगता है कि उसने उस क्षेत्र पर अधिकार किया होगा।
खारवेल का राज्य बहुत विस्तृत नहीं था। उसके अभियानों के आधार पर उसकी राज्य सीमा का सहज अनुमान किया जा सकता है। उत्तर में वह मगध को छूता था; पश्चिम
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