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खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख एवं जैनधर्म
कही गयी है कि 7वें राजवर्ष में उन्हें वजिधरवती नाम्नी रानी से एक पुत्र हुआ। अभिलेख में खारवेल के लोक-हिताय कार्यों और विजय अभिमानों की चर्चा है। लोक हिताय कार्यों में कलिंग नगरी खिबिर के गोपुरों, प्राकारों, मकानों का प्रतिसंस्कार, तालाब के बांधों की मरम्मत, बगीचों का संवारना, लोकरंजन के लिये नृत्य, गीत वादन का आयोजन, तनसुलियवाटा प्रणाली का विस्तार, राजकर की माफी तथा दान आदि का उल्लेख है।
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राजनीतिक इतिहास की दृष्टि से खारवेल के अभिमानों का विशेष महत्व है। इस अभिलेख में उसके दूसरे, चौथे, आठवें, ग्यारहवें और बारहवें वर्ष में किये गये अभियानों का संक्षिप्त उल्लेख है। इन उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि उसके ये अभियान सैनिक शक्ति प्रदर्शन मात्र थे। उसने किसी प्रकार का भू-विजय किया ऐसा प्रतीत नहीं होता है। इनका पहला अभियान पश्चिम दिशा में ऋषिक ( मूसिक) नगर तक हुआ था। ऋषिक अथवा मूसिक नगर की अवस्थिति का ठीक ज्ञान अबतक नहीं किया जा सका है। अभिलेख से ज्ञात होता है कि वह कन्हवेणा (कृष्ण-वेणा ) नदी के निकट कहीं था। कुछ विद्वान उसके कृष्णा नदी होने का अनुमान करते हैं। किन्तु यह नदी कलिंग के पश्चिम नहीं दक्षिण बहती है। कुछ लोग इसे वेणगंगा अनुमान करते हैं। यह मध्य प्रदेश के चांदा जिले में सिवनी के निकट प्राणहिता नदी में मिलती है, जो सिरोच के निकट गोदावरी में गिरती है। कुछ इसे वेणगंगा के स्थान पर उसकी सहायक नदी कन्हन के रूप में पहचानते हैं। अभिलेख में यह भी कहा गया है कि वह सातकर्णी की चिन्ता नहीं कर (उपेक्षा कर) वहाँ तक पहुंचा था। सातकर्णी आध्र- सातवाहन नरेशों का नाम रहा है। इससे अनुमान होता है कि यह स्थान सातवाहन राज्य के निकट था अथवा उसके अन्तर्गत था। खारवेल ने दूसरा अभियान चौथे वर्ष में किया था। यह अभियान भी पश्चिम दिशा में ही था। इस बार उसने विन्ध्य पार कर राष्ट्रिकों और भोजकों को परास्त किया। अभिलेख में इनके मुकुट, छत्र, शृंगार आदि के, जो उनके राजचिह्न थे, नष्ट किये जाने का उल्लेख है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे स्वतंत्र राज्य थे। अशोक के अभिलेखों में इनका उल्लेख अपरान्त ( पश्चिमी भारत ) में हुआ है। लोग भोजकों की अवस्थिति बरार में और राष्ट्रिकों की खान देश (अहमदनगर) में अनुमान करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सुदूर पश्चिम में इस भूभाग तक पहुंचने में खारवेल ने सफलता प्राप्त की थी। पर अभिलेख की भाषा से ऐसा ध्वनित नहीं होता। उसका यह अभियान विन्ध्य के किसी प्रदेश में ही सीमित था और वह कलिंग से बहुत दूर नहीं था। इसलिए ये राज्य नर्मदा के दक्षिण वेणगंगा से आगे ही कहीं रहे होंगे।
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खारवेल ने तीसरा अभियान आठवें वर्ष में उत्तर की ओर किया। इस बार उसने राजगृह के निकट गोरथगिरि ( गया जिला अन्तर्गत बराबर पर्वत) तक धावा मारा। शशिकान्त की धारणा है कि खारवेल अपने इस अभियान में आगे बढ़ते हुए मथुरा का विमोचन करते हुए यमुना तक पहुंच गये थे। किन्तु अभिलेख में जिस अंश के आधार पर शशिकान्त ने यह कल्पना की है, वह सुपाठ्य नहीं है। राजगृह से मथुरा के बीच उन दिनों
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