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________________ 378 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ अधीनता स्वीकार की और वह मगध और अंग से प्रचुर धनराशि लेकर लौटा। जब खारवेल लौटा तो वह नन्द राजा द्वारा लायी गयी कलिंग जिन मूर्ति को भी अपने साथ कलिंग लेता आया। कलिंग वासियों ने अपने अराध्य देवता के पुनः कलिंग पधारने पर राष्ट्रीय स्तर पर स्वागत किया और राष्ट्रीय उत्सव मनाया। यह जैनधर्म के प्रति कलिंग वासियों की अगाध श्रद्धा का प्रतीक था। इस पुरातात्विक प्रमाण से यह स्वतः स्पष्ट है कि कलिंग में नन्दराजा के समय से ही जैनधर्म का प्रचार-प्रसार था। राज्यकाल के तेरहवें वर्ष में खारवेल का मन धर्म की ओर अधिक उन्मुख हुआ। कुमारी पर्वत (उदयगिरि) पर उसने अर्हत देवालय के निर्माण की व्यवस्था की। अर्हत मन्दिर के पास ही एक विशाल भवन भी बनवाया था। यह मन्दिर संभवत: पत्थर का बना हुआ था। जिस गुफा में यह लेख लिखा है, वह गुफा भी बनवाई गयी थी। भिलेख के पंक्ति 15 से ऐसा जात होता है कि तेरहवें वर्ष में खारवेल ने कोई ऐसा आयोजन किया था जिसमें उसने देशभर में ज्ञानियों, तपस्वियों, ऋषियों, अर्हतों आदि को एकत्र किया था। वस्तुतः यह आयोजन किस प्रकार का था, वह अभिलेख के पाठ से स्पष्ट नहीं है। शशिकान्त ने इसे जैन अर्हतों की संगीति होने का अनुमान किया है और इस संगीति का स्थल भी उन्होंने हाथीगुम्फा की छत पर एक मन्दिर के ध्वंसावशेषों के रूप में ढूँढ निकाला है। यदि उनका यह अनुमान ठीक है, जिसकी सम्भावना हो सकती है, तो कहना होगा कि अशोक और कनिष्क ने जो कार्य बौद्धधर्म के लिये किया था, वहीं कार्य खारवेल ने जैनधर्म के लिये किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि जैनधर्म को स्थापित करने में खारवेल ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। किन्तु इस प्रकार की किसी संगीति का उल्लेख जैन साहित्य में उपलब्ध नहीं है। खारवेल के वंश-कुल के सम्बन्ध में लोगों ने तरह-तरह की कल्पनाएँ उपस्थित की हैं। 'ततिये-कलिंग-राजवंसे यगे (पंक्ति 2-3) से कछ विद्वानों ने उनके कलिंग के तीसरे वंश में होने का अनुमान प्रकट किया है। किन्तु यह अनुमान युग-पुरूष के अर्थ को ठीक से ग्रहण न करने के कारण ही किया गया है। युग पुरूष का प्रयोग वंशावली के प्रसंग में पीढ़ी के अर्थ में होता है। तात्पर्य है कि खारवेल कलिंग राजवंश की तीसरी पीढ़ी में थे। चेदि राजवंश (पंक्ति -1) के उल्लेख से यह ज्ञात होता है कि वे चेदिवंश के थे। यहाँ चेदि का तात्पर्य चेदि प्रदेश से है या पौराणिक राजवंश से, कहना कठिन है। दोनों प्रकार की संभावनाएँ प्रकट की जा सकती है। सामान्य मान्यता है कि खारेवल चेदिवंश के थे और कलिंग राजवंश की तीसरी पीढ़ी में हुए थे। अभिलेख में जीवन परिचय देते हुए पिता-पितामह किसी का भी उल्लेख नहीं है। इसमें मात्र खारवेल के अपने निजी कार्यों की ही चर्चा है। आरम्भ में उनके शैशव की चर्चा करते हुए उनके खेल-कूद और शिक्षा का उल्लेख किया गया है। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में वे युवराज हुए तथा 24 वर्ष की अवस्था में उन्होंने राजभार ग्रहण किया अर्थात् राज्याभिषेक हुआ। तदन्तर 13 वर्ष तक शासक के रूप में उन्होंने जो कुछ किया उसका उल्लेख इस अभिलेख में हुआ है। इस प्रसंग में वैयक्तिक बातों में केवल एक ही बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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