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________________ राजा श्री खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख 373 उल्लेख नहीं है और किसी विदेशी साहित्यिक स्रोत से भी उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। उड़ीसा में पुरी जिले में उदयगिरि की पहाड़ी पर बड़ी हाथीगुम्फा के मुहाने की सिरदल पर 17 पंक्तियों में ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण अभिलेख जो 'खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख' के नाम से अब अभिज्ञात है, खारवेल के विषय में जानकारी का एक मात्र व एकल स्रोत है। एक-सौ वर्ष से भी अधिक समय तक उसको पढ़ने और उसका भाष्य करने के प्रयत्न किये जाते रहे। 1885 ई. में डॉ. भगवानलाल इन्द्रजी द्वारा एक पाठ प्रकाशित किया गया था जो पहला ऐसा पाठ था जिससे इस लेख का ऐतिहासिक महत्व प्रकट होता था। 1927 ई. में डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल और डॉ. राखाल दास बनर्जी द्वारा इस अभिलेख का वाचन और भाष्य प्रकाशित किया गया। 1929 ई. में डॉ. बेनी माधव बरुआ ने भी इसका वाचन और भाष्य प्रकाशित किया। 1942 ई. में डॉ. दिनेशचन्द्र सरकार ने भी भाष्य किया। इस अभिलेख के अनुसंधान से जुड़े अन्य प्राच्यविदों में जार्ज ब्यूलर, टी. ब्लॉख, प्रो. कीलहोर्न, डॉ. जे. एफ. फ्लीट, लूडर्स, डॉ. एफ. डब्ल्यू. टामस, प्रिन्सेप, स्ओन कोनो, मुनि जिनविजय, रामप्रसाद चांदा और प्रो. एम. एस. रामास्वामी उल्लेखनीय हैं। 1971 ई. में हमारी पुस्तक The Hathigumpha Inscription of Kharavela and the Bhabru Edict of Asoka - A Critical Study प्रकाशित हुई। उसमें हमने इस विषय में हुई समस्त शोध का मंथन कर और भाषा-शैली व भाव-व्यंजना को दृष्टिगत रखते हुए अभिलेख का पुनर्वाचन किया तथा त्रुटित, खंडित, अस्पष्ट या मिट गये अंशों को पुनर्स्थापित कर एक सुवाच्य पाठ प्रस्तुत किया। उसका आशय भी भाव, प्रसंग, परंपरा और ऐतिहासिक तथ्यों के सापेक्ष प्रस्तुत किया। इस सबका व्यापक स्वागत विद्वत् समाज में भारत में और विदेशों में हआ। कई देशी और विदेशी विश्वविद्यालयों में इस पुस्तक को पाठ्यक्रम में सम्मिलित भी किया गया। इस पुस्तक का द्वितीय परिवर्धित संस्करण 2000 ई. में D.K. Printworld (P) Ltd., Sri Kunj, F-52, Bali Nagar, New Delhi-110015 से प्रकाशित हुआ। विगत 30 वर्षों में हुए शोध अध्ययन को इसमें समाहित कर लिया गया। AppendixIII में इस अभिलेख से संबंधित कतिपय बिन्दुओं पर अतिरिक्त प्रकाश डाला गया। Section-III में प्राकृत भाषा और भारतीय लिपियों पर विशेष अध्ययन दिया गया। दोनों ही संस्करणों में परिशिष्ट में नागरी लिपि में लेख का मूल पाठ और उसका हिन्दी रूपान्तर भी दे दिया गया। यह विशेषकर जैन विद्वानों की जिज्ञासा को उत्प्रेरित करने के उद्देश्य से किया गया है। शोधादर्श वर्ष 2000 ई. के अंक 40, 41 व 42 में इस पुस्तक और विषय की प्रभूत चर्चा हुई है। पुनः अंक 56 (जुलाई 2005) और अंक 59 (जुलाई 2006) में भी इस विषय की चर्चा की गई है। 1920 के दशक में श्वेताम्बर आम्नाय के मुनि कल्याणविजय और मुनि पुण्यविजय ने खारवेल में अभिरुचि प्रदर्शित की थी जिसका आशय खारवेल को श्वेताम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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