SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत शोध संस्थान के उदय एवं विकास की गौरव गाथा 21 व्यक्त किये। इसके साथ भवन निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ जो सन् 1965 में पूर्ण हुआ। मुजफ्फरपुर में प्राकृत शोध संस्थान का प्रारम्भ वासोकुण्ड में भवन की अनुपलब्धतता के कारण प्राकृत शोध संस्थान मुजफ्फरपुर में एक किराये के मकान में सन् 1955 से प्रारम्भ हुआ। इसके प्रथम निदेशक डॉ. हीरालाल जैन थे, उन्होंने सन् 1961 तक संस्थान को गरिमापूर्ण ढंग से चलाया। पश्चात् वर्ष 1961 से 1973 तक प्रो. नथमल टॉटिया निदेशक रहे। इसके बाद वर्ष 1974 से 1984 तक सर्वश्री प्रो. गुलाबचन्द्र चौधरी, प्रो. नागेन्द्र प्रसाद और प्रो. रामप्रकाश पोद्दार ने निदेशक पद का कार्यभार सम्भाला। सन् 1984 से दिसम्बर 2004 तक का सात प्राध्यापकों ने स्थानापन्न निदेशक के रूप में कार्य किया। डॉ. लालचन्द्र जैन को दो बार निदेशक का कार्यभार सम्भालने का अवसर मिला। सन् 2004 के दिसम्बर में प्रो. (डॉ.) ऋषभचन्द्र जैन ने नियमित निदेशक पद का कार्यभार सम्भाला और वे मनोयोग पूर्वक संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु संलग्न हैं। उनका व्यक्तित्व गतिशील है, प्रज्ञा और श्रम-साधना के धनी हैं। वैशाली वासियों के लोक जीवन में महावीर के दर्शन-आचरण के लोक सर्वेक्षण में वे लेखक के सहयोगी रहे। इस सर्वेक्षण का प्रतिवेदन वैशाली इन्स्टीच्यूट रिसर्च बुलेटिन 'नं. 19 में 'वैशाली के मानस में महावीर का प्रभाव' के नाम से प्रकाशित हुआ है। सर्वेक्षण का विस्तृत प्रतिवेदन लेखक की पुस्तक 'जन्मभूमि का सच' में प्रकाशित है। संस्थान की उपब्धियाँ जनवरी 2007 तक प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली, वासोकुण्ड से 261 विद्यार्थियों ने स्नातकोत्तर उपाधियाँ अर्जित की हैं। सर्वश्री डॉ. योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा और डॉ. विद्यावती जैन ने डी. लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कर संस्थान के गौरव में वृद्धि की है। अभी तक 70 शोधार्थियों को पी-एच. डी. की उपाधियाँ मिलीं, जबकि वर्तमान में ग्यारह शोधार्थी शोधकार्य में संलग्न हैं। शोध संस्थान द्वारा महत्वपूर्ण प्राचीन प्राकृत और संस्कृत ग्रंथों का प्रकाशन 'प्राकृत जैन इन्स्टीच्यूट सीरीज' के अंतर्गत किया जाता है। अभीतक 74 प्रकाशन हुए। इनमें 'भ. महावीर का जन्म स्थान' प्रकाशन जन्म-भूमि सम्बंधित भ्रम निवारण हेतु महत्वपूर्ण है। इसके लेखक डॉ. ऋषभचन्द्र जैन हैं। वैशाली अभिनन्दन-ग्रंथ (द्वितीय संस्करण) सन् 1985 में इसी संस्थान से प्रकाशित हुआ। वर्ष 1963 से अप्रैल 1986 तक महावीर जयंति के अवसर पर प्रतिवर्ष विविध विषयों पर संगोष्ठियाँ सम्पन्न हुई। सन् 1987 से स्व. श्री जगदीश चन्द्र माथुर, आई. सी. एस. की स्मृति में व्याख्यानमाला का आयोजन प्रतिवर्ष होता है। वर्ष 2005 से पूर्व निदेशक डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी की स्मृति में एक व्याख्यानमाला प्रारम्भ हुई। अन्य सामयिक व्याख्यानमालाएँ भी आयोजित की जाती हैं। 2009 में डॉ. हीरालाल जैन स्मृति व्याख्यानमाला और आचार्य कुन्दकुन्द व्याख्यानमाला भी प्रारम्भ की जा रही है। सन् 1982 से प्राकृत और जैन शास्त्रों के विविध आयामों पर संस्थान के सदस्यों द्वारा संगोष्ठी आयोजित की जाती रही है, जो निरंतरित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy