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जैन साहित्य में रामकथा
दीक्षा ले लेती हैं और तप करके स्वर्ग प्राप्त करती हैं। इस तरह कथा समाप्त होती है। जैन साहित्य में रामकथा की इन धाराओं का पर्याप्त विकास हुआ है। पहली धारा का आधार लेकर जिन ग्रन्थों की रचना हुई उसमें विमलसूरि का पउमचरियं, रविषेण का पद्मचरित, स्वयम्भूदेव का पउमचरिउ, हेमचन्द्र का त्रिषष्ठि- श्लाकापुरुषचरित, जिनदास का रामपुराण, पम्प कवि की पम्परामायण, पद्मदेव विजयगणि का रामचरित तथा सोमसेन का रामचरित मुख्य हैं।
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दूसरी परम्परा के ग्रन्थों में गुणभद्र का उत्तरपुराण, कृष्ण कवि का पुण्यचन्द्रोदयपुराण, पुष्पदन्त का महापुराण, चामुण्डराय का त्रिषष्ठिश्लाकापुरुषपुराण, बन्धुवर्मा का जीवन सम्बोधन तथा नागराज का पुण्यास्रवकथासार मुख्य हैं।
भारत की विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं में भी जितना रामकथा सम्बंधी साहित्य जैन साहित्यकारों द्वारा लिखा गया वह उपर्युक्त दोनों परम्पराओं में से ही किसी एक को आधार मानकर निबद्ध हुआ है।
कथावस्तु की दृष्टि से वैदिक, जैन और बौद्ध साहित्य में उपलब्ध रामकथा में बहुत-सी समानताएं और असमानताएं पायी जाती हैं। बौद्ध परम्परा में रामकथा का प्रसार नहीं हुआ। रामकथा के अनेक रूप होते हुए भी जैन परम्परा में इसका प्रचार अत्यधिक हुआ है। मूल रामचरित की कथावस्तु क्या थी, इसके विवाद में न पड़कर यदि वैदिक, जैन और बौद्ध तीनों धाराओं के रामकथा सम्बंधी साहित्य को उठाकर देखें तो ज्ञात होगा कि कथावस्तु में पाये जाने वाले अन्तर के बावजूद रामकथा के पात्रों का चरित्र, क्रमशः निखरता ही गया है। राम को ही नहीं रामकथा के अन्य सभी पात्रों को एक नयी लालिमा, एक नया रूप, एक नयी चेतना और एक नया विकास आगे-आगे के साहित्य में मिला है। जैन साहित्य पात्रों के चारित्रिक विकास की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट माना जा सकता है। बाल्मीकि रामायण में राम ने मात्र रावण का ही वध नहीं किया बल्कि बालि, शम्बूक तथा अनेक राक्षसों को भी मारा, अहिंसा की मूल भित्ति पर प्रतिष्ठित जैन धर्म यह स्वीकार नहीं कर सकता था कि राम जैसा महापुरुष, जिसे इसी जीवन में मोक्ष प्राप्त करना है, अनेक मनुष्यों की हत्या करे। इसी कारण राम के चरित को बेदाग रखने के लिए जैन रामायणकारों ने रावण, बालि और यहां तक कि शम्बूक का नाश भी लक्ष्मण के हाथ से कराया और राम को नरहत्या से अछूता बचा लिया। इसी प्रकार जैन रामायणकारों ने हनुमान और सुग्रीव को केवल मनुष्य ही नहीं बताया प्रत्युत उन्हें विद्याधर कहकर आकाशगामिनी आदि अनेक विद्याओं से युक्त बताया है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राम के उज्ज्वल चरित से राम कथा के सभी पात्रों के चरित्र आलोकित हैं। रामकथा भारत की महनीय सांस्कृतिक निधि है।
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विगत वर्षों में रामकथा पर प्रचुर सामग्री प्रकाश में आयी है। जैन ग्रन्थकारों द्वारा लिखित अनेक महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थ प्रकाश में आये हैं। इधर के लगभग तीन दशकों में उन ग्रन्थों पर अनुसन्धान कार्य भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुए हैं पर वे सभी प्रायः साहित्यिक अध्ययन की कोटि में आते हैं। अभी सामाजिक और सांस्कृतिक अनुसन्धान का श्रीगणेश भी नहीं हुआ। इस ओर विद्वानों का ध्यान जाना चाहिए।
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