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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
2. उत्तरपुराण की कथा बौद्ध साहित्य के दशरथ जातक की तरह प्रारम्भ होती है। वाराणसी में दशरथ नाम के राजा राज्य करते थे। उनके चार पुत्र थे- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। दशानन विनमि विद्याधर वंश के पुलस्त्य का पुत्र था। किसी दिन उसने अमितवेग की पुत्री मणिमती को तपस्या करते देखा और उसपर मोहित होकर उसकी साधना में विघ्न डालने लगा। मणिमती ने निदान किया कि मैं तेरी ही पुत्री होकर तेरा नाश करूँगी। मृत्यु के बाद वह रावण की रानी मन्दोदरी के गर्भ में आयी। उसके जन्म के बाद ज्योतिषियों ने रावण को बताया कि यह तुम्हारा नाश करेगी। रावण ने भयभीत होकर मारीच को आज्ञा दी कि वह उसे कहीं छोड़ आएं। एक रत्नमंजूषा में रखकर मारीच उस कन्या को मिथिला देश में गाड़ आया। हल जोतते समय वह रत्नमंजूषा दिखाई पड़ी। लोग उसे राजा जनक के पास ले गये। जनक ने खोलकर देखा तो उसमें से एक सुन्दर कन्या निकली। जनक ने उसका नाम सीता रखा और पुत्र की तरह उसका लालन-पालन करने लगे।
बहुत समय के बाद राजा जनक ने राम और लक्ष्मण को अपने यज्ञ की रक्षा करने के लिए बुलाया। यज्ञ समाप्त होने के बाद राम का सीता के साथ विवाह हो गया। वे दशरथ से आज्ञा लेकर वाराणसी में रहने लगे।
नारद ने रावण के सामने सीता के सौन्दर्य का वर्णन किया जिससे रावण ने सीता को हर लाने का संकल्प किया। उसने अपनी बहिन शूर्पणखा को सीता के मन की परीक्षा करने के लिए भेजा। शूर्पणखा ने लौटकर बताया कि सीता के मन को चलायमान करना असम्भव है।
एक दिन राम और सीता वाराणसी के निकट चित्रकूट वाटिका में विहार कर रहे थे। मारीच स्वर्ण मृग का रूप धारण करके राम को दूर ले गया। इतने में रावण राम का रूप बनाकर आया और सीता से कहने लगा कि मैंने मृग को महल भेज दिया है। वह सीता को पालकी पर चढ़ने की आज्ञा देता है। यह पालकी वास्तव में पुष्पक विमान है जो सीता को ले जाता है। रावण अपनी आकाशगामिनी विद्या नष्ट होने के डर से पतिव्रता सीता को स्पर्श नहीं करता।
दशरथ को स्वप्न द्वारा यह पता चला कि रावण ने सीता का हरण किया। उन्होंने यह समाचार राम के पास भेज दिया। इसी मौके पर सुग्रीव और हनुमान बालि के विरुद्ध सहायता मांगने राम के पास पहुंचे। हनुमान को लंका भेजा गया और वे सीता को सांत्वना देकर वहां से लौट आये। इसके बाद लक्ष्मण ने बालि का वध किया और सुग्रीव को उसके राज्य का अधिकार दिलाया।
इसके बाद वानरों और राम की सेना ने लंका के लिए प्रस्थान किया। लंका में भयंकर युद्ध हुआ। अन्त में लक्ष्मण ने चक्र से रावण का सिर काट लिया। दिग्विजय के बाद सब लौट आये। सीता के आठ पुत्र उत्पन्न हुए। सीता के त्याग का यहां कोई उल्लेख नहीं मिलता। लक्ष्मण की एक असाध्य रोग से मृत्यु हो जाती है और राम लक्ष्मण के पुत्र पृथ्वी सुन्दर को राजपद पर तथा सीता के पुत्र अतिनंजव को युवराज पद पर अभिषिक्त करके मुनि दीक्षा ले लेते हैं और तप करके मोक्ष जाते हैं। सीता भी अनेक रानियों के साथ
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