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जैन साहित्य में रामकथा
लगी। वापस आकर पति से सारा समाचार कहा। खरदूषण के साथ लक्ष्मण का भयंकर युद्ध हुआ। खरदूषण के आह्वान पर रावण उसकी सहायता के लिए आया। सीता को देखकर उनपर मोहित हो गया। रावण सीता के अपहरण का उपाय सोचने लगा। उसने अपनी विद्या के बल से जाना कि राम को सहायतार्थ बुलाने के लिए लक्ष्मण ने सिंहनाद का संकेत बताया है। उसने प्रपंचपूर्ण सिंहनाद किया। राम लक्ष्मण की सहायता के लिए सीता को अकेली छोड़कर चले गये। रावण सीता को अकेली पाकर हर ले गया।
सीता हरण के बाद राम बहुत दुःखी होते हैं। इसके बाद सुग्रीव के साथ राम की मैत्री का वर्णन है। साहसगति ने सुग्रीव का रूप धारण कर सुग्रीव की पत्नी का अपहरण कर लिया था। राम ने सुग्रीव को उसकी पत्नी प्राप्त करा दी। सुग्रीव की आज्ञा से विद्याधर सीता की खोज करते हैं। कुछ ही समय में रत्नजटी नामक विद्याधर आकर बताता है कि सीता का हरण रावण ने किया है। रावण एक महान बलशाली राजा था इसलिए विद्याधरों ने इसके साथ युद्ध करने से इनकार कर दिया। तभी उन्हें अनन्तवीर्य केवली का वचन याद आया कि जो व्यक्ति कोटि-शिला को उठायेगा, वही रावण को मारेगा। सबने कोटिशिला उठाने की परीक्षा की। लक्ष्मण ने शिला उठा ली। विद्याधर अब भी रावण से डरते हैं और हनुमान को लंका भेजने की सलाह देते हैं। हनुमान लंका जाते हैं और वहां पर अनेक तरह का विनाश करके सीता का सन्देश लेकर राम के पास लौट आते हैं।
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इसके बाद युद्ध का वर्णन है। सुग्रीव आदि विद्याधरों के साथ राम लंका के लिए प्रस्थान करते हैं। मार्ग में वानर वंशी विद्याधरों की सेना को समुद्र नामक राजा रोकता है जिससे युद्ध होता है। अन्त में समुद्र की पराजय होती है। राम कृपा करके उसका राज्य उसे वापस लौटा देते हैं। सेना लंका पहुंचती है। वहां रावण के साथ भयंकर युद्ध होता है। अन्त में रावण - लक्ष्मण पर चक्र चलाता है। वह चक्र लक्ष्मण को लगने के बदले उनकी प्रदक्षिणा देकर हाथ में आ जाता है। लक्ष्मण इसी चक्र से रावण का वध करते हैं।
राम अयोध्या लौटकर राज्य करने लगते हैं। भरत विरक्त होकर दीक्षा ले लेते हैं। लोकापवाद के भय से राम सीता को वन में छुड़वा देते हैं। सीता वज्रबंध के आश्रम में रहती है। वहीं उनके लवण और अंकुश दो पुत्र पैदा होते हैं।
बड़े होने पर लवण और अंकुश का राम और लक्ष्मण के साथ युद्ध होता है। बाद में नारद के द्वारा पारस्परिक परिचय होने पर पिता-पुत्रों में मिलाप होता है। हनुमान, सुग्रीव, विभीषण आदि के कहने पर राम सीता को बुला लेते हैं। सीता अग्नि परीक्षा देती है और उसमें सफल होने के बाद आर्यिका हो जाती है।
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किसी दिन दो देव राम और लक्ष्मण के स्नेह की परीक्षा करने के लिए आते हैं और लक्ष्मण को राम की मृत्यु का असत्य समाचार सुनाते हैं। लक्ष्मण अपने भाई की मृत्यु के समाचार सुनते ही अपने प्राण त्याग देते हैं। अब राम को लक्ष्मण की मृत्यु का समाचार मिलता है। वे अत्यन्त दुःखी होते हैं और विक्षिप्त से हो जाते हैं। अन्त में लक्ष्मण की अन्त्येष्टि करने के बाद राम मुनि हो जाते हैं और साधना करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। पउमचरियं की कथा यहां समाप्त होती है।
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