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________________ 368 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ चन्द्रनखा और विभीषण। जब रत्नश्रवा ने पहले-पहल अपने पुत्र रावण को देखा तब शिशु माला पहने हुए था। इस साला में पिता को रावण के दस सिर दिखाई दिये, इस कारण शिशु का नाम दशानन या दशग्रीव रखा गया। अपने मौसेरे भाई का वैभव देखकर रावण आदि भाई बड़े होने पर तप करने के लिए चले और तप के द्वारा अनेक विद्याएं प्राप्त की। इसके बाद बालि, सुग्रीव, हनुमान आदि का वर्णन है। 21वें पर्व से मूल कथा आरम्भ होती है। जनक तथा दशरथ की वंशावली के बाद दशरथ की तीन पत्नियों का उल्लेख है। कौशल्या, सुमित्रा तथा सुप्रभा ये तीन रानियां थीं। एक दिन नारद ने रावण से कहा कि आपकी मृत्यु जनक की पुत्री के कारण दशरथ के पुत्र द्वारा होगी। इस पर रावण ने अपने भाई विभीषण को इन दोनों को मार डालने के लिए भेजा। वहां नारद ने जनक और दशरथ को रावण के इस समाचार से पहले ही सावधान कर दिया। दोनों अपने पुतले महल में रखकर गुप्त रूप से परदेश चले गये। विभीषण ने इन दोनों मूर्तियों को ही वास्तविक जनक और दशरथ समझ उनके सिर काट कर समुद्र में फेंक दिये। परदेश में दशरथ कैकेयी के स्वयंवर में पहुंचे। कन्या ने दशरथ के गले में माला डाली। इसपर अन्य राजा बिगड़ गये। उनसे राजा दशरथ का युद्ध हुआ। कैकेयी वीरांगना थी। उसने स्वयं दशरथ का रथ चलाया। राजा दशरथ अपने प उसकी चतुराई से युद्ध में विजयी हुए। कैकेयी की चतुराई से प्रसन्न होकर दशरथ ने उसे मनचाहा वर मांगने को कहा। कैकेयी ने कहा-जब आवश्यकता होगी तब मांग लूंगी। कैकेयी सहित राजा के चार रानियां हो गयीं। इनसे चार पुत्र उत्पन्न हुए। कौशल्या से राम, सुमित्रा से लक्ष्मण, कैकेयी से भरत और सुप्रभा से शत्रुघ्न। राजा जनक के विदेहा नामक रानी से एक पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुई। पुत्र का नाम भामण्डल रखा तथा पुत्री का नाम सीता रखा गया। बड़े होने पर सीता का स्वयंवर हुआ। स्वयंवर में राम ने घनुष चढ़ाया। उनका सीता के साथ विवाह हो गया। दशरथ राम को राज्य देकर तपस्या के लिए जाने की सोचने लगे। तभी कैकेयी ने अपना वर मांगकर भरत को राज्य मांगा। यह सुनकर राम, लक्ष्मण और सीता दक्षिण की ओर चले गये। कैकेयी और भरत ने वन में जाकर राम से लौट चलने का अनुरोध किया, पर सब व्यर्थ हुआ। राम अयोध्या नहीं लौटे। इसके बाद वन भ्रमण का विस्तार से वर्णन है। वन में म्लेच्छ राजाओं से राम और लक्ष्मण के अनेक युद्ध हुए। राम ने कई विपत्तिग्रस्त लोगों की सहायता भी की। जटायु से भेंट होने के बाद राम दण्डक वन में रहने लगे। - इसके बाद सीता हरण और उनकी खोज का वर्णन है। चन्द्रनखा तथा खरदूषण के पुत्र शम्बूक ने सूर्यहास खड्ग की प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की। सूर्यहास प्रकट हुआ। लक्ष्मण संयोग से वहां पहुंचे। शम्बूक खड्ग ले, इसके पूर्व ही उन्होंने उसे उठा लिया। खड्ग की परीक्षा के लिए उन्होंने वहीं पास के एक बांस-समूह पर उससे प्रहार किया। उसी बांस समूह में शम्बूक तपस्या कर रहा था। लक्ष्मण के इस प्रयोग से बांसों के साथ उसका भी सिर कट गया। चन्द्रनखा ने अपने मृत पुत्र को देखा। वह बहुत विलाप करने राणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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