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________________ जैन साहित्य में रामकथा डॉ. गोकुलचन्द्र जैन* रामकथा प्राचीन काल से ही जैन साहित्यकारों को प्रिय रही है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा कन्नड़ आदि क्षेत्रीय भाषाओं में रामकथा पर अनेक जैन ग्रन्थ उपलब्ध हैं। राम का एक नाम पद्म भी था। यही नाम जैन साहित्यकारों को अधिक प्रिय लगा। इसी आधार पर विमलसूरी ने प्राकृत में पउमचरियं, रविषेण ने संस्कृत में पद्मचरितम् तथा स्वयम्भू ने अपभ्रंश में पउमचरिउ की रचना की। जैन साहित्य में जब रामकथा लिपिबद्ध होना शुरू हुई, सम्भवतया तक कथा के कई रूप प्रचलित हो चुके थे। बाल्मीकि रामायण, अद्भुत रामायण और पालि के दशरथ जातक की परम्परा प्रचलित थी। . अब तक उपलब्ध जैन साहित्य में रामकथा का वर्णन करने वाला पहला ग्रन्थ विमलसूरि का प्राकृत पउमचरियं है। कतिपय विद्वानों ने इसे चौथी शती की रचना माना है और कतिपय इससे भी पूर्व की। विमलसूरि के उल्लेख के अनुसार रामकथा का अवतरण जैन साहित्य में उनके पूर्व ही हो चुका था। उन्होंने पउमचरियं में लिखा है कि मैं नामावली में निबद्ध और आचार्य परम्परा से प्राप्त समस्त पद्मचरित आनुपूर्वी से संक्षेप में कहूँगा णामावलियणिबद्धं आयरिपमरंपरागयं सव्वं। वोच्छामि पउमचरियं अहाणपव्विं समासेण।। तिलोयपण्णति में जिन श्रेष्ठ श्लाकापुरुषों की गणना है, उनमें राम की भी गणना की गयी है। बाद के ग्रन्थकारों में स्वयम्भू का पउमचरिउ, गुणभद्र का उत्तरपुराण और रविषेण का पद्मचरित या पद्मपुराण विशेष उल्लेखनीय हैं। जैन साहित्य में रामकथा का विकास दो धाराओं में हुआ है। पहली धारा विमलसूरि के पउमचरियं को आधार मानकर चली है, दूसरी गुणभद्र के उत्तर पुराण को। 1. पउमचरियं की कथा राक्षस तथा वानर वंश के वर्णन के साथ प्रारम्भ होती है। राजा श्रेणिक ने भगवान महावीर के प्रधान शिष्य गौतम गणधर से रामकथा को जानने की इच्छा प्रकट की। इसपर गौतम पउमचरियं सुनाते हैं। राक्षसवंशीय राजा रत्नश्रवा तथा कैकसी के चार सन्तानें थीं। रावण, कुम्भकर्ण, * पूर्व अध्यक्ष, प्राकृत एवं जैनागम विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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