SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म के चौबीस तीर्थंकर 353 "सिद्धार्थनृपतितनयो भारतवर्षे विदेहकुण्डपुरे। देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान्संप्रदर्श्य विभुः। 79 रानी त्रिशला को शुभ फल के विषय में बताते हुए कहा कि तुम एक यशस्वी, ज्ञानी, जगत् के उद्धारक पुत्र की माता बनोगी। रानी इस शुभ समाचार से निहाल हो उठी। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यह मान्यता है कि इन्हीं स्वप्नों को कुण्डपुर (ब्राह्मणकुण्ड) की देवानंदा ब्राह्मणी ने देखा था किन्तु गर्भ परिवर्तन के द्वारा 82 रात्रि पश्चात् यह अवसर त्रिशला को इन्द्र द्वारा प्रदान किया गया। हरिणेगमेषी ने गर्भाहरण कर 83वीं रात्रि में चौबीसवें तीर्थकर को त्रिशला की कुक्षि में प्रतिष्ठित किया। नौ मास, सात दिन, बारह घन्टे तक गर्भ में पालन करने के पश्चात् रानी त्रिशला ने चैत्र-शुक्ला-त्रयोदशी सोमवार 599 ई. पू. को आर्यमा योग में एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया; "चैत्रसितपक्ष फाल्गुनि शशंकयोगदिने त्रयोदश्याम्। यज्ञ स्वोव्वस्थषु ग्रहेषु सोम्येषु शुभलग्ने।।''30 "दृष्टे ग्रहैरथ निजोत्वगतैः समग्रैः लग्ने यथा- पतितं कालमसूत राज्ञी। चैत्रे जिनं सिततृतीयजया निशान्ते सोमान्हि- चन्द्रमसि-चोत्तरफाल्गुनिस्थे।।। सर्वगुण सम्पन्न बालक की वरीयता को परख सिद्धार्थ और त्रिशला ने अत्यधिक आह्लादित हो समृद्धि के सूचक "वर्द्धमान" नाम से उसे अलंकृत किया और अपने इस पुत्र के जन्म को अत्यन्त धूमधाम से मनाया था। "इस अवसर पर टैक्स माफ कर दिये गये, लोगों की सरकार द्वारा जब्त सम्पत्ति उन्हें लौटा दी गई। सिपाही किसी के घर जाकर उसे पकड़ नहीं सकते थे। कुछ समय के लिए व्यापार को रोक दिया गया। आवश्यक वस्तुएं सस्ती कर दी गई। सरकारी कर्ज और जुर्माने माफ कर दिए गए और कुण्डपुर के कैदियों को इस अवसर पर छोड दिया गया।""वर्द्धमान" के आगमन से ही सर्वत्र राज्य भर में समृद्धि उमड़ने लगी थी। पैदा होने पर यह वैभव और अधिक बढ़ता रहा। जनता इस तेजस्वी बालक को पाकर बेहद प्रसन्न थी। यही वहीं, वरन् वंश-कुल, नगर, राज्य सभी वर्द्धमान को प्राप्त कर धन्य हो गये, वर्द्धमान की वरीयता में सबका गौरव समा गया। तभी तो वैशाली, ज्ञातृवंश आदि से उन्हें सम्बद्ध किया गया; "विशाला जननी यस्य, विशालं कुलमेव च। विशालं वचनं चास्य, तेन वैशालिको जिनः।। 32 "नाम नाएपुत्ते नामकुलचन्द्र, विदेहदिन्ने, विदेहजच्चे विदेह सूमाले तीसं वासाई विदेहसि क१।। 33 राजपुत्रोचित वर्द्धमान का लालन-पालन होने लगा। उनकी छवि जहां सबका मन मोह लेती वहीं असाधारण प्रतिभा से भी लोग प्रभावित होते। सिद्धार्थ एवं त्रिशला अपना असीम स्नेह उड़ेल "वर्द्धमान" को संवारने लगे। सुघर-शरीर-अलंकारों से अलंकृत द्विगुणित हो उठा। राजपुत्र के उत्कृष्टतम आभूषणों का वर्णन इस प्रकार किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy