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कठोरतम साधना के पश्चात् चैत्र कृष्ण चतुर्थी के दिन इनको "केवलज्ञान" की उपलब्धि हुई। इसके बाद चतुर्विध- संघ की स्थापना कर पार्श्वनाथ ने "चातुर्याम धर्म" का उपदेश दिया;
स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
"चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंच सिक्खाओ देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महामुणी ।। ' 24
अर्थात् पार्श्वनाथ ने "अहिंसा", सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह इन चार व्रतों पर बल दिया। 30 वर्ष तक गृहस्थावस्था 83 दिन छद्मस्था (समाधि की अवस्था), 83 दिन 70 वर्ष केवली अवस्था, इस प्रकार कुल 100 वर्ष की आयु व्यतीत कर महावीर से 250 वर्ष पूर्वी सम्मेदशिखर पर समाधिपूर्वक पार्श्वनाथ ने निर्वाण पद प्राप्त किया।
पार्श्वनाथ के अनुयायी 16,000 श्रमण थे, और आर्यदत्त उनमें सर्वश्रेष्ठ थे। उनके पास आठ गण और आठ गणधर थे। 38,000 भिक्षुणियों ने उनका अनुगमन किया था। 7,64,000 श्रावकों और 3,27,000 श्राविकाओं ने उनके बताए गए मार्ग को अपनाया। पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुकी है कि वे ऐतिहासिक पुरुष थे। डॉ. हर्मन याकोबी ने प्रबल प्रमाणों से इसको पुष्ट किया है;
"The parswa was a historical person, is now admitted by all a very probable"25.
(24) महावीर
मानवता के उद्धारक, युग-निर्माता तथा पांच महाव्रतों के सम्बल से समाज को संवारने वाले चौबीसवें (अन्तिम) तीर्थंकर महावीर का जन्म, चैत्र शुक्ल त्रयोदशी सोमवार 599 ईसा पूर्व को लिच्छवी राजकुमारी त्रिशलारानी के गर्भ से हुआ।
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'पार्श्वशतीर्थसंताने पञ्चाशद्रविशतात्मके । तद्-मन्तरवत्यत्युिर्महावीरो च जात्यान् ।। 'पास जिणाओ य होई वीरजिणो, अड्ढाइज्जसमेहि गमेहि चरिमो समुत्यनो ।।
"
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वात्मजिणुप्पत्तीदो उत्पत्ती वड्ढमाणस्स ।।
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विदेह जनपद में वैशाली नगर के समीप "कुण्डपुर" (कुण्डग्राम) है, जो आधुनिक बिहार के पटना से 55 किलोमीटर उत्तर वैशाली नामक स्थान के क्षत्रिय ज्ञातृक राजा सिद्धार्थ की धर्मपत्नी त्रिशला रानी ने आषाढ़ शुक्ला - षष्ठी को ब्राह्ममूहुर्त में सोलह-सुखकारी स्वप्न देखे, जो इस प्रकार है:
हाथी, बैल, सिंह, लक्ष्मी, दो मालाएं, चन्द्रमा, सूर्य, दो मछलियां, जल से भरा हुआ स्वर्ण कलश, तालाब, समुद्र, सिंहासन, देवों का विमान, धरणेन्द्र का भवन, रत्नों का ढेर, निर्धूम अग्नि स्वप्न में देखी। रानी की नींद स्वप्न देखने के बाद खुल गई । राजा सिद्धार्थ इस तथ्य को समझ कर आह्लादित हो उठे क्योंकि वे स्वयं निमलशास्त्र के वेत्ता थे;
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