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प्राकृत शोध संस्थान के उदय एवं विकास की गौरव गाथा
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संस्थान हेतु दान की अपीलें
बिहार के मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की ओर से वैशाली में प्राकृत शोध संस्थान की स्थापना हेतु प्रथम पांच वर्ष के व्यय हेतु दस लाख रुपये दान देने की अपील जैन समाज एवं अन्यों से की गयी। दूसरी अपील महामहिम राज्यपाल श्री रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर की ओर से प्रकाशित की गयी। उन्होंने अपील में कहा कि अहिंसा के ऊपर शो, विश्वव्यापी हितकर होगा, यह न केवल परस्पर मानवीय व्यवहार किन्तु मानवीय सामाजिक सम्बंधों और सभ्यता तथा संस्कृति के विकास हेतु आवश्यक है। आपने कहा वैशाली संघ को आप सब खुले हृदय से सहयोग करें। पच्चीस शताब्दियों पूर्व वैशाली से 'अहिंसा परमोधर्म:' का उद्घोष हुआ था। वैशाली-संघ द्वारा प्राकृत शोध संस्थान की स्थापना से यह उद्देश्य पूर्ण होगा।
उक्त अपीलों का अद्भुत प्रभाव हुआ। कलकत्ता के स्वनाम धन्य जैन श्रेष्ठी साहु शांति प्रसाद जी जैन ने उत्साहपूर्वक प्राकृत शोध संस्थान के भवन निर्माण हेतु पांच लाख रुपया और प्रथम पांच वर्षों के चालू व्यय हेतु पच्चीस हजार प्रति वर्ष देने की घोषणा की, जिसे बिहार राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया। कलकत्ता के अन्य जैन बन्धुओं ने भी सहयोग दिया।
वैशाली-संघ ने दिनांक 06.02.1953 को राज्य सरकार के समक्ष प्राकृत शोध संस्थान की स्थापना हेतु प्रस्ताव रखा, यह आगे की कार्यवाही का आधार बना। नौवां वैशाली महोत्सव दिनांक 28.03.1953 को डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर प्राकृत शोध संस्थान की योजना दर्शाकर शासन से उसे स्वीकार करने का अनुरोध किया। राज्य शासन ने तत्काल कार्यवाही की और पत्र क्रमांक 1271, दिनांक 18.05.1953 द्वारा वेशाली-संघ को प्राकृत शोध संस्थान की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की। श्री जगदीश चन्द्र माथुर, आई. सी. एस. की कल्पना साकार हुई। वैशाली-संघ ने अपने को गौरवान्वित अनुभव किया। तदनुसार, बिहार राज्य सरकार ने पत्रांक-5314 दिनांक 25.11.1955 द्वारा मुजफ्फरपुर जिले के वैशाली में 'इन्स्टीच्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट स्टडीज एण्ड रिसर्च इन जैन एण्ड प्राकृत लरनिंग' की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की। निर्धनों द्वारा भूमि दान का आदर्श
अब समस्या भूमि प्राप्त करने की थी। संस्थान की स्थापना हेतु तीस एकड़ भूमि आवश्यक थी। जिस स्थान पर संस्थान की स्थापना हेतु भूमि का चयन किया गया उस स्थान के निर्धन अजैन भूमिस्वामियों ने अत्यंत उदारता और त्याग का परिचय दिया। वैशाली-संघ की प्रेरणा से उन्होंने बिना किसी प्रतिदान या यशकामना के अपनी प्राणदयारी और जीवनदायनी तेरह एकड़ भूमि अपने आराध्य भ. महावीर का नाम स्मरण करते हुए लोकहितार्थ समर्पित कर दी। दान की यह अद्भुत मिशाल थी, जो सदैव प्रेरणास्पद बनी रहेगी। भूमिदान दाताओं ने जाति और धर्म के संकीर्ण भेद विस्मृत कर धार्मिक सहिष्णुता, अविरोध और त्याग का आदर्श प्रस्तुत किया। भूमिदान दाताओं में क्षत्रिय, भूमिहार, पासवान (हरिजन) एवं मुसलमान बंधु भी सम्मिलित थे। इनके नाम हैं- अभूचक
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