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जन्म दिया। गर्भकाल में तद्नुरूप बालक का नाम
स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
अरनाथ रखा गया:
" पइट्ठावियं से णाम सुमिणमि महारिहाइरदंसणत्तणेण अरो त्ति। 5 युवावस्था में सांसारिक सुखों को भोगते हुए " अरनाथ" को विरक्ति-भाव अनुभव हुआ, परिणामतः मागशीर्ष शुक्ल एकादशी को इन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली। "केवलज्ञानं" प्राप्त कर अन्ततः अरनाथ ने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया। ( 19 ) मल्लिनाथ
माता श्री ने रत्नमय चक्र के अर" को देखा था, इसलिए
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उन्नीसवें तीर्थंकर "मल्लिनाथ" को मिथिला नरेश, कुंभ की रानी प्रभावती ने मगशिर-शुक्ल एकादशी को जन्म दिया। गर्भकाल में रानी को पुष्पशय्या पर सोने का दोहद उत्पन्न हुआ, अतः तद्नुसार "मल्ली" नामकरण किया गया:
" जम्हाणं अम्हे इमीए दारियाए माउएमल्लसमणिज्जरिव । डोहले विणीते तं होउणं नामेण मल्ली ।। ' 16
श्वेताम्बर, इन्हें स्त्री रूप में मानकर जहां "मल्ली- भगवती" नाम से सम्बोधित करते हैं, वहीं दिगम्बर, पुरुष रूप में मानकर " मल्लिनाथ" कहते हैं। असीम त्याग, तप एवं साधनों से " केवलज्ञान" प्राप्त कर मल्लिनाथ तीर्थंकर की वरीयता से विभूषित हुए। ( 20 ) मुनिसुव्रत
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'मुनिसुव्रत" बीसवें तीर्थंकर हुए। इनका जन्म राजगृह नरेश " सुमित्र" की रानी पद्मावती की कुक्षि से ज्येष्ठ-कृष्ण नवमी को हुआ। गर्भकाल में माताश्री की विशेष रुचि व्रतों के पालन में रही, अतः तद्नुसार बालक का नामकरण किया गया;
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'गब्भगए मायापिया य सुव्बता जाता ।। ""
युवाकाल में विवाह और राज्य सुख में लिप्त न होकर "मुनिसुव्रत" दीक्षा की ओर उन्मुख हुए। दीक्षा लेने पश्चात् तप में लीन, मगशिर- कृष्ण एकादशी को "केवलज्ञान " की उपलब्धि कर " अरिहन्त" कहलाए । अन्ततः एक हजार मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ।
( 21 ) नमिनाथ
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'नमिनाथ' जैनधर्म के 21वें तीर्थंकर हुए हैं। इनका जन्म मिथिला के राजा विजय की महारानी वप्रा के गर्भ से श्रावण कृष्ण अष्टमी को हुआ था। संसार की असारता का अनुभव करके इन्होंने आषाढ़ कृष्ण नवमी को गृहत्याग कर जिनदीक्षा ग्रहण की। कठोर साधना के पश्चात् मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को 'केवलज्ञान' प्राप्त कर सर्वज्ञ - सर्वदर्शी बन गये। धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करते हुए वैशाख कृष्ण दसवीं को नमिनाथ ने सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया।
( 22 ) अरिष्टनेमि
बाईसवें तीर्थंकर " अरिष्टनेमि" को महाराजा समुद्रविजय की रानी शिवादेवी ने 16 शुभ स्वप्नों के बाद श्रावण शुक्ला - पंचमी को जन्म दिया। गर्भकालीन प्रभाव के कारण
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